नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे की jain rot teej kab hai जैन रोट तीज कब है हमारे भारत देश में कई तरह का पर्व मनाया जाते हैं।
इसलिए भारत देश को पर्वों का नगरी कहा जाता है पूरे विश्व में सबसे ज्यादा पर्व भारत देश में मनाया जाता है। जिनमें जैन धर्म के लोग जैन रोट तीज पर्व मनाते हैं।
जैन रोट तीज पर्व का विशेष महत्व दिया गया है जैन रोट तीज पर्व विशेष रूप से महिलाओं को जरूर करना चाहिए इस पर्व को करने से परिवार में सुख शांति पॉजिटिव एनर्जी और हर प्रकार के संभव सुख प्राप्त होता है।
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अगर आप भी जैन रोट तीज करना चाहते हैं लेकिन आपको पता नहीं है कि jain rot teej kab hai तो आज हम आपको बताएंगे की जैन रोट तीज कब है
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जैन रोट तीज कब मनाया जाता है जैन रोट तीज का महत्व क्या है जैन रोट तीज व्रत कथा क्या है जैन रोट तीज की पूरी जानकारी हम आपको बताएंगे जैन रोट तीज के बारे में पूरी जानकारी जानने के लिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें
Jain rot teej kab hai जैन रोट तीज कब है. 2025
Ans- जैन रोट तीज भाद्रपद के शुक्ल तृतीया को है जैन रोट तीज हर वर्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है यह पर्व साल में एक ही बार मनाया जाता है यह पर्व जैन धर्म के लोग विशेष रुप से मनाते हैं
जैन रोट तीज व्रत अवधि 3 वर्ष 12 वर्ष या 24 वर्ष होती है और रोट तीज उपवास रस त्याग पूर्वक एक आसन शक्ति के रूप में किया जाता है
और इस व्रत को करते समय मंत्रों का उच्चारण किया जाता है जैन रोट तीज व्रत भूखतया खंडवाल जैन समाज में प्रचलित है इस दिन विशेष रूप से रोट बनाया जाता है और रसप्रीत जात पूर्वक रोट खाया जाता है 6 रसों का त्याग करके इस दिन रोट खाया जाता है और पूरी श्रद्धा के साथ रोट तीज पर्व मनाते हैं
जैन रोट तीज को अच्छी तरह से समझने और जानने के लिए जैन रोट तीज व्रत कथा के बारे में जानना होगा जिससे आप जेल रोड तीज व्रत के बारे में पूरी तरह से समझ पाएंगे तो अब हम जैन रोट तीज व्रत कथा के बारे में जानते हैं
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जैन धर्म रोट तीज व्रत कथा
भारत में जितने भी पर्व मनाया जाते हैं उसके पीछे धार्मिक कथा अवश्य होती है उसी तरह जैन धर्म रोट तीज से जुड़ी एक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं कि जैन धर्म रोट तीज पर्व कैसे शुरू हुआ इसे शुरू करने के पीछे क्या धारणाएं हैं
एक समय की बात है विपुलाचल पर श्री वर्धमान स्वामी शरण सहित पधारे तब राजा सैनिक ने नमस्कार करके हाथ जोड़कर प्रार्थना किए की है महाराज रोट तीज व्रत कैसे मनाया जाते हैं और इस व्रत से किसी लाभ मिलता है और इस व्रत को करने की विधि क्या है तो कृपया हमें बताइए उनकी बातें सुनकर वर्धमान स्वामी रोट तीज व्रत कथा बताने लगे और वहां उपस्थित सभी लोगों से ध्यान पूर्वक सुनने को कहा या बात उस समय की है जब उज्जैनी नगरी में एक सागर दत्त नाम का एक सेठ रहता था उसके 56 करोड़ दिनारओं की लक्ष्मी दिशान तरों में माल भरकर उसके जहाज जाते थे उस सेठ के 7 पुत्र थे एक दिन की बात है श्री मंदिर जी में एक मुनिराज जी ने
यति और सावत के धर्मों का वर्णन किया सभी लोगों ने अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार व्रत लिए सागर दत्त के सेठानी ने भी प्रार्थना करी की मुझे भी ऐसा सरल व्रत दीजिए जो कि साल में एक बार आए और उसमें मैं कुछ खा सकूं तब श्री मुनिराज ने बताया कि व्रत नियम थोड़े से भी इस पामर जीव को संसार में पार लगा देते हैं
चौबीसा व्रत जिसे रोट तीज भी कहते हैं इसे साल में एक ही बार करना होता है भाद्रपद शुक्ल तृतीया को सामाहिक स्नान ध्यान करके 24 महाराज की पूजन करना चाहिए
पूरे दिन में एक वक्त 6 रसों का त्याग करके एक आसन और एक ही अन और पानी से अंतराय रहित व्रत करना चाहिए
इससे लक्ष्मी अटल रहती हैं व्रत के दिन कू कथाओं का त्याग करके धर्म ध्यान में लीन रहना चाहिए चार प्रकार का दान देना चाहिए यह व्रत 3,12 या 24 वर्ष करना चाहिए श्रावक के कर्मों का पालन करना चाहिए
सेठानी श्री गुरु को नमस्कार करके व्रत लेकर अपने घर आई और आपने कुटुंब परिवार को व्रत लेने के विषय में बताइए कुटुम परिवार ने कहा फूलों में रखकर कोमल चावल घी शक्कर मेवा अत उत्तम पदार्थों के मिश्रण से जो भोजन किया जाता है वह हजम नहीं होता
तो ऐसा कठोर व्रत कैसे किया जाएगा कुटुम परिवार की निंदा सुनकर सेठानी ने मुनि श्रेष्ठ द्वारा लिए गए व्रतों का त्याग कर दिया व्रत भंग के पापउदय सर्व लक्ष्मी नष्ट हो गई मोतिया सब पानी हो गई रत्नों और सोना चांदी का ढेर कंकड़ पत्थर में बदल गए देशांतर के परोहन जहां के तहां रह गए धन के अभाव होने के कारण दास दसीयां भाग गई
तथा दिन बड़े ही कष्ट से व्यतीत होने लगे तब सेठ सेठानी उनके साथ पुत्र और उनकी स्त्रियां इस प्रकार 16 प्राणियों ने देशांतर जाने का विचार किया और उज्जैन नगरी छोड़कर बाहर निकल गया हस्तिनापुर में सागर दत्त के पुत्री प्रणाय थी संकट के कुछ दिन काटने की इच्छा से हस्तिनापुर जाकर अपनी पुत्री को खबर पहुंचाई तेरे पास मदद के लिए आए हैं
हमारे संकट के कुछ दिन के लिए सहायक होना चाहिए पुत्री ने ऐसी बात सुनकर खबर लाने वाले को कहा कि मेरे ससुराल वाले यह कहने लग जाएंगे कि हमारा धन चोरी कर पहुंचा देती है
अतः मेरे से ऐसा कुछ नहीं सहा जाएगा इसलिए यह संकट के दिन दूसरी जगह जाकर बिताए और थाली मैं दाल भात भोजन की सामग्री एक वक्त का भोजन पांच रत्न थाली में छुपा कर भेज दिए
पेट के पापोदे और सेठानी जी व्रत भांग के दोस् से वह थाली मिट्टी का बर्तन भोजन सामग्री सहित कीड़े और मोहरे के काबेले बन गई उसे उसी जगह गड्ढा खोदकर उसने गाड़ दिए और बसंतपुर ससुराल थी वहां कुछ समय कष्ट के दिन काट देने की इच्छा से गऐ सागर दत्त सेठ के साले राम सेठ के यहां जीवन वार थी इसकी खबर सुनकर उन्होंने विचार किया राम जी के जीवनी वास्ते वास्ते बड़े-बड़े लोग आए होंगे ऐसी गरीबी व्यवस्था में हमारा वहां पहुंचना ठीक नहीं होगा
और रात के वक्त अंधेरे में चलेंगे कई दिनों से भूख से सभी अधीर हो रहे थे सागर दत्त के पत्नी ने कहा कि मैं जाकर चावलों का पानी जो मकान से नाले में गिर रहा है ले आती हूं एक मटकी हांडी ले जाकर नाले के नीचे रख दी मकान के ऊपर रामजी सेठ के स्त्री खड़ी देख रही थी
उसने अपनी ननद को ऐसी गरीबी हालत में देखकर विचार किया कि इनका घर नष्ट हो गया है और अब हम आपको सताने आए हैं ऐसा विचार करते हुए जितना ले से चावल का मांड जा रहा था उसमें आने में एक पत्थर सरका दिया वह पत्थर पड़ने से नीचे रखी मटकी हड्डी टूट गई
और चावल का गरम गरम मांड सेठानी के पैरों पर गिर गया जिससे वह जल गई और बहुत दुखी हुई पुत्र खबर पाकर कपड़े की झोली में डाल कर उठा ले गया अयोध्या में सागर सेठ का मित्र रहता था रेखा अपने कुटुंब को दूसरे ठिकाने पर छोड़कर अकेले ही अपने मित्र से मिलने गया मित्र ने सागर सेठ दत्त का आदर सम्मान किया और धैर्य देते हुए कहा कि है मित्र संतोष धारण करो हमारे घर को तुम अपना ही घर समझकर यहां रहो तुम अपने परिवार को दूसरे ठिकाने छोड़कर क्यों आए क्या इस घर को तुमने दूसरा समझा था दोनों को आपस में रात में महल में दुख सुख की बात करते हुए आधी रात्रि व्यतीत हो गई मित्र तो उठ कर दूसरे ठिकाने सोने को चला गया
और सागर दत्त सेठ राम वही रह गए उस वक्त वहां चित्रण का मंडा हुआ मोर था और उसमें एक हार था अचानक से वह हार गायब होने लगा वह हार कौन निकल रहा था और सेठ पड़े पड़े देख रहे थे मुझे यह चोरी का कलंक लगेगा और मैं कैसे रहूंगा ऐसा विचार कर रात्रि में ही चला गया और अपने कुटुम में जाकर सारी हकीकत कहीं उधर मित्र ने बहुत अफसोस किया कि मैं बहुत सेवा करने वाला था
वह चला क्यों गया वहां से चलकर उन्होंने चंपा पुरी में समुद्र दत्त सेठ के पास पहुंचकर अपने दुख की सब हकीकत कही सेठ ने हर एक प्राणी को दो शेर खाई के गले हुए जो और दो पैसे भर कड़वा तेल की मजदूरी में रख लिया स्त्रियां घर का काम करती थी और पुरुष दुकान का काम करते थे सागर दत्त सेठ ने समुद्रगुप्त की स्त्री को धर्म बहन बना लिया था कुछ दिन बाद भाद्रपद शुक्ल दूज को समुद्र दत्त की स्त्री ने सब को कहा कि कल हर एक काम सफाई से करना कि कल व्रत का दिन है सागर दत्त के छोटे बेटे के स्त्री ने पूछा कि कल कौन सा व्रत है
और इससे क्या होता है और कैसे किया जाता है समुद्र की सेठ की स्त्री ने उपरोक्त विधि बताते हुए कहा कि इससे लक्ष्मी बढ़ती है सागर की पुत्रवधू ने श्रद्धा करते हुए अपने भाग्य की जो की रोटी बनाकर सबके साथ गुप्त रीति से ले गई और चढ़ाते हुए प्रार्थना करें कि हे प्रभु हम तो रत्नों का नावेद चढ़ाने लाए थे
परंतु आज हमारी ऐसी स्थिति है कि मैं उपवास करके अपने भाग्य को नावेद बनाकर आपको अर्पण कर रही हूं और करुणा भरी पुकार की व्रत में दृढ़ श्रद्धा की वजह से इतना पुण्य उपार्जन हुआ चढ़ाया हुआ नवेद तुरंत ही स्वर्ण रत्नों का बन गया
पंच लोग को खबर मिलने से सभी आश्चर्यजनक करने लगे समुद्र दत्त सेठ की स्त्री ने एक बड़ा रोट बनवा कर सागर दत्त कि स्त्री को देते हुए कहा कि भोजाई यह रोट आज तुम्हारे बच्चों को दे देना उसने पूछा कि नानद जी आज कौन सा त्यौहार है कि आज उत्सव मनाया जा रहा है उसने कहा कि आज चौबीसी व्रत अर्थात रोट तीज व्रत है और कभी संकट नहीं आता है
सागर दत्त की पत्नी को मुनिराज के दिए हुए व्रत की याद आने लगी और उसे भंग कर देने और छोड देने से भारी पश्चाताप हुआ और यह भी जाना कि इस व्रत भंग के दोस् से हमारी यह संकट आपन स्थिति हो गई है और पश्चाताप करते हुए व्रत करने का निश्चय किया व्रत पर सर होने से और अपने भूल पर पश्चाताप पुण्य का उदय हुआ जिसके प्रभाव से हाथ में आया हुआ रोट तुरंत ही स्वर्ण में परिवर्तित हो गया
स्वर्ण का रोट देखकसे उत्पन्न होने से समुंद्र दत्त सेठ की स्त्री ने कहा कि आटा और स्वर्ण का रोट दोनों पास पास रखे थे सो गलती से स्वर्ण का रोट आ गया और आटे का रोट वहीं रह गया मुझे वापस दे दो मैं तुम्हारे लिए गेहूं का रोट लती हूं जाति गेहूं का बन गया तब समुंद्र दत्त की पत्नी ने कहा कि भौजाई अब तुम्हारे पुण्य का उदय आ गया है
जिससे तुम्हारे हाथ में जाते ही स्वर्ण का रोट बन जाता है उधर सागर दत्त ने व्यापार धंधा किया जिससे वे वापस करोड़पति हो गया वहां से रवाना होकर वह मित्र के घर अयोध्या आया मित्र ने पहले जैसे सम्मान किया था वैसे ही सामान भाव प्रेम पूर्वक अब भी किया सो सज्जन अनुराग मित्र दुख काटन विपदा हरण सो लाखन में एक लेकिन नौकर लोग कहने लगे यह वही सेठ है जो पहले मोर की गले से हार निकाल कर ले गए उसी द्रव्य से कमाई करके आज करोड़पति बन कर आए और अब फिर कुछ लेने आए हैं
इसकी चौकसी करना रात के वक्त वही चित्रांग का मढा हुआ मोर उस हार को वापस उगलने लगा तब सबको बुला कर दिखाया कि एक दिन चित्रांग मोर हार निगल गया था और आज यह दिन है चित्रांग का मोर हार उगल रहा है वहां कुछ दिन रहकर सेठानी अपने ससुराल बसंतपुर आई रामजी सेठ खबर पाकर लेने आए बहन ने कहा कि भाई तुम हमारे धन को देखकर लेने आए हो अगर आप चाहते तो हमें संकट में पहले मदद करते उस वक्त भोजाई ने माड भी लेने नहीं दिया
गरम गरम चावलों का माड पत्थर से गिराया जिसमें मेरा अंग जल गया जो अभी तक ठीक नहीं हुआ है तब रामजी सेठ ने कहा बहन तुम्हारे पापउदय से कुबुद्धि सुझती थी और अपने बहन को समझा कर अपने घर ले आए और कुछ दिनों बाद हस्तिनापुर में अपने पुत्री के यहां चले गए पुत्री खबर पाकर बहुत से सहेलियों के साथ गाजे-बाजे लेकर अगवानी आई होत की बहन अनहोत का भाई नैना पीछे नार पराई भाइयों ने कहा कि उस दिन को याद कर जब हम संकटग्रस्त आए थे
तब तुम एक दिन भी रखने को राजी नहीं थी ना मिलने को आई और भोजन में कीड़े और कोयले भरकर भेजे थे जिन्हें हम यहां गाड़ गए थे बहन ने कहा भैया मैंने तो भोजन ही भेजा था तुम्हारा पापउदय से ऐसा बन गया अगर मैं उस अवस्था में मिलने आती तो मेरे ससुराल और तुम्हारे दोनों की बदनामी होती नगर दत्त सेठ ने अपनी पुत्री को धन जेवर देकर विदा किया
और वहां से अपने देश उज्जैनी को वापस आ गए जो लक्ष्मी पहले पिनड् रूप हो गए थे वह सब अपनी असली अवस्था में मिले दास दासी नौकर चाकर सब आ मिले देशांतर के परोहन जो जहां तहां रुक गए थे वह भी पुण्य के प्रभाव से आ मिले इसलिए व्रत भांग को महादोस् समझकर इस व्रत को सुदृढ़ श्रद्धा के साथ करना चाहिए और इस व्रत की कथा बांचना सुनना चाहिए चाहे कोई भी व्रत हो व्रत करने वाले को पूजा दान जरूरी करना चाहिए
जैन रोट तीज व्रत विधि
जैन रोट तीज व्रत विधि कुछ इस प्रकार है
जैन रोट तीज में 6 रसों का त्याग करना होता है
जैन रोट तीज व्रत के दिन गेहूं के आटे का रोट बनाया जाता है
इसके बाद इसे रसप्रीतजात रोट खाया जाता है
पूरे दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है
सुबह उठकर घर की साफ सफाई करके स्नानादि करना चाहिए
इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहन कर चौबीसा महाराज की पूजा करना चाहिए
और पुरी श्रद्धा के साथ ध्यान करके रोट तीज व्रत का पालन करना चाहिए
जेन रोट तीज व्रत का महत्व
जैन धर्म जैन रोट तीज व्रत का विशेष महत्व माना गया है इस व्रत को करने से परिवार में क्लेश का वातावरण दूर होकर सुख शांति आती है। इस व्रत को करने से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है माता लक्ष्मी का कृपा सदैव बनी रहती है।
विशेष रूप से महिलाओं को इस व्रत को जरूर करना चाहिए उसके परिवार में सुख शांति दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है कष्ट विपदा बाधा से उसे मुक्ति मिलती हैं और पूरा जीवन सुखी पूर्वक बिता सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जैन रोट तीज की अवधि क्या होती है
Ans - जैन रोट तीज आप अपनी क्षमता अनुसार 3 वर्ष 12 वर्ष या फिर 24 वर्ष कर सकते हैं जैन रोट तीज व्रत वर्ष में एक बार आता है जिसे पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए
Jain रोट तीज में रोट कौन बनाती है
Ans - जैन रोट तीज में रोट घर की मुख्य कुटुमबनी घर की मालकिन बनाती है और अलग-अलग लोगों के नाम का रोट अलग अलग बनाती है
अंतिम शब्द
आज हमने आपको बताया कि जैन रोट तीज कब है jain rot teej 2024 जैन रोट तीज के बारे में हमने आपको पूरी जानकारी दी हैं जैसे आप जैन रोट तीज कब है जान गए होंगे जैन रोट तीज की व्रत कथा के बारे में हमने आपको जानकारी दिया है।
मुझे आशा है कि आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा अगर इस पोस्ट से जुड़ी कोई सवाल आपके मन में हो तो कमेंट में जरूर बताएं
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