Janm लेने से पहले बच्चे अपने मां के गर्भ में क्या सोचता पूरी जानकारी
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और वह किस प्रकार भगवान का स्मरण करता है मां के गर्भ में क्या महसूस करता है उस समय उसके मस्तिष्क में क्या-क्या बातें चलती है कर्मकांड की प्रीत कल्प अध्याय में पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु से पूछते हैं कि हे प्रभु जब कोई आत्मा दूसरा शरीर धारण करने से पहले अपनी मां के गर्भ में होती है तो वह कैसा महसूस करती है कृपया मुझे विस्तार से बताइए
1 अपने मां के गर्भ में बच्चे पिछले जन्म का पूर्ण ज्ञान रहता है
तब भगवान विष्णु गरुड़ से कहते हैं गरुड़ गर्भस्थ जीव अपने पूर्व जन्मों का ज्ञान रहता है वह वहां स्मरण करता है की आयु के समाप्त होने ऊपर शरीर का परित्याग करके मलादी में रहने वाले छोटे-छोटे क्रिमि या कीटाणुओं की विशेष योनि में स्थित हूं पहले में सरक कर चलने वाली सर्प यादी की योनि में पहुंचा हूं
फिर मच्छर हो गया था उसके बाद चार पैरों वाला अब्र नामक पशु बन गया था अथवा जंगली शूकर की योनि में प्रवेश था इस प्रकार गर्भ में रहते हुए उस जीवात्मा को पूर्ण ज्ञान रहता है
2 गर्भ में शिशु पिछले जन्म के कर्म को याद करके पछताता है
किंतु उत्पन्न होते ही वह तत्काल उसे भूल जाता है उसे याद आता है कि मैं दूसरे को चलने का विचार करता रहा मैंने शरीर की रक्षा के लिए धर्म का परित्याग करके द्वित छल कपट और चोर प्रति का आश्रय लिया फिर गर्भस्थ जीव को याद आता है कि उसने अपने पिछले जन्म में अत्यंत कष्ट से स्वयं लक्ष्मी को एकत्र किया था किंतु अभिलाष धन का उपयोग वह नहीं कर सका और अग्नि देव अतिथि और बंधु बांधव को स्वादिष्ट फल तथा तांबूल दे करके मैं उन्हें संतुष्ट करने में असफल रहा।
3 पिछले जन्म में उन्होंने पूजा पाठ एवं भक्ति का काम क्यों नहीं किया
फिर गर्भस्थ जीव को याद आता है कि इस पृथ्वी पर स्थित श्री विक्रम भगवान विष्णु की प्रतिमा का दर्शन तो मैंने किया नहीं उन्हें ने प्रणाम नहीं किया और ना तो उनकी पूजा की प्रभास क्षेत्र में विराजमान भगवान सोमनाथ की भक्ति पूर्वक पूजा एवं वंदना भी मेरे द्वारा नहीं हुई है जब ऐसी चिंता गर्भस्थ जीव करता है
4 मां के गर्भ में बच्चा यमदूत से बात करते हैं
तब यमदूत उसे कहते हैं कि है यह धारे जैसा तुमने किया है उसके अनुसार अपना विस्तार करो फिर मां के गर्भ में पल रहा जीव अपने को कोसते हुए कहता है कि तुमने अपनी कमाई से जो धन अर्जित किया था उसे से किसी को दान नहीं दिया
पृथ्वी पर रहते हुए तुम ने भूमि दान गोदान जल दान फलदान तांबूल दान अथवा गंध दान भी नहीं किया तो अब भला क्या सोच रहे हो तुम्हारे पिता और पितामह मर गए जिसने तुमको अपने गर्भ में धारण किया वह तुम्हारी माता भी मर गई तुम्हारे सभी बंधु भी नहीं नहीं रहे ऐसा तुमने देखा है तुम्हारा पांच भौतिक शरीर अग्नि में जलकर भस्म हो गया।
तुम्हारे द्वारा एकत्र किया गया संपूर्ण धन धान्य पुत्रों ने हस्तगत कर लिया जो कुछ तुम्हारा सुभाषित है और जो कुछ तुमने धर्म संचय किया है वह तुम्हारे साथ है इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला राजा हो अथवा सन्यासी या कोई श्रेष्ठतम ब्राह्मण हो मैं मरने के बाद पुनः आया हुआ नहीं दिखाई देता है जो भी इस धरातल पर उत्पन्न हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है और
5 मां के गर्भ में बच्चे जीवन चक्र से मुक्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं
इसके बाद वह विलाप करने लगता है और मैं भगवान से प्रार्थना करता है कि यही प्रभु जब जन्म के बाद मुझे पुनः मृत्यु को ही प्राप्त होना है तो फिर मेरा जन्म क्यों हो रहा है अगर संभव हो तो मुझे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त करिए गरुड़ पुराण के अनुसार फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं गर्व से अलग होने की इच्छा नहीं करता क्योंकि बाहर जाने से पाप कर्म करने पड़ते हैं जिससे नरक आदि प्राप्त होते हैं इस कारण से मैं बहुत दुखी हूं आपके चरण का आश्रय लेकर मैं आत्मा का उद्धार करूंगा मां के गर्भ में पूरे 9 महीने शिशु भगवान से प्रार्थना ही करता है
6 मां के गर्भ से बाहर आने में असहनीय पीड़ा होने के कारण पिछली बातों को भूल जाते हैं
लेकिन यह समय पूरा होते ही जब प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है तो उसे कुछ याद नहीं रहता साइंस के अनुसार मां की गर्भ से बाहर आने वाली शिशु को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है जिसके कारण उसके मस्तिष्क पर काफी जोर पड़ता है शायद यही कारण है कि उसे कुछ भी याद नहीं रहत
लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार प्रसूति की हवा से जैसे ही श्वास लेता हुआ शिशु माता के गर्भ से बाहर निकलता है तो उसे किसी भी बात का ज्ञान नहीं रहता गर्व से अलग होकर तुम्हें ज्ञान रहित हो जाता है इसी कारण जन्म के समय वह रोता है
7 मां के गर्भ में बच्चे ( शिशु) खुद को एक पिंजरे में कैद महसूस करता है
इन सबके अलावा गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने यह भी बताया है कि जब शिशु गर्भ में 6 मास का हो जाता है तो वह भूख प्यास को महसूस करने लगता है और माता के गर्भ में अपना स्थान बदलने के लायक भी हो जाता है तब है कुछ कष्ट भी भोगत्ता है माता जो भी खाने के रूप में ग्रहण करती है उसकी कोमल त्वचा से होकर गुजरता है और इन कष्टों के कारण कई कई बार शिशु माता के गर्भ में ही बेहोश हो जाता है 6 माह के बाद शिशु का मस्तक नीचे की ओर और पैर ऊपर हो जाते हैं ऐसी स्थिति में वह चाहकर भी इधर-उधर हिल नहीं सकता मैं खुद को एक पिंजरे में बंद किए पक्षी की तरह महसूस करता है
8 मां के गर्भ में बच्चे( शिशु) भगवान से अपने मुक्ति का प्रार्थना करता है
ऐसे में शिशु ईश्वर की स्तुति करने लगता है और कहता है कि है लक्ष्मीपति जगदा धार संसार को पालने वाले भगवान विष्णु का मै शरणागत होता हूं है भगवान इस योनि से अलग तुम्हारे चरणों का स्मरण कर फिर ऐसे उपाय करूंगा जिससे मैं मुक्ति को प्राप्त कर सकूं इसके बाद अपने आसपास गंदगी देख फिर से भगवान से प्रार्थना करता है और कहता है कि भगवान मुझे कब बाहर निकालो भी सभी पर दया करने वाली ईश्वर ने मुझे यह ज्ञान दिया है उस ईश्वर कि मैं शरण में जाता हूं इसलिए मेरा पुनः जन्म मरण होना उचित नहीं है और अंत में भगवान विष्णु पक्षीराज गरुड़ से कहते हैं कि यही कारण है कि गर्भ में पहुंचकर जो जीवात्मा जैसा चिंतन करता है शरीर धारी वैसा ही जन्म लेकर बालक युवा और वृद्ध होता है यदि गर्भ में सोची गई बात सांसारिक मोह के कारण विस्मृत हो जाती हैं तो पुनः मृत्यु काल में उसकी याद आ जाती है यदि शरीर के नष्ट होने पर वह हृदय में ही रह गई है तो पुनः गर्भ में जाने पर उसका स्मरण होना निश्चित है
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