शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

Hartalika तीज ब्रत 2024 मे कब है ? पूजा विधि subh muhurat date and time

नमस्कार दोस्तों आज हम बात बात करेंगे की हरतालिका तीज ब्रत 2022 में कब है पूजा विधि subh muhurat date and time आइए जानते हैं कि हरतालिका तीज व्रत कैसे करें पूजा विधि क्या होगी शुभ मुहूर्त कब शुरू होगा 

सनातन धर्म के अनुसार हिंदू धर्म की स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत मनाती है हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है

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भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि हस्त नक्षत्र को भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन किया जाता है

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हर तालिका तीज व्रत विशेष रुप से कुंवारी कन्या और सुहागन स्त्रियां करती है

हरतालिका तीज व्रत बहुत ही कठिन व्रत है इस व्रत को करने के लिए पूरा दिन और पूरी रात उपवास रखना पड़ता है और दूसरे दिन माता गौरी और शिव का पूजन करने के पश्चात ही यह व्रत  खोला जाता है

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हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अगर कुंवारी कन्या हरतालिका तीज व्रत करती है तो उसे मनचाहा पति पाने का वरदान मिलता है और यदि हरतालिका तीज व्रत सुहागन स्त्रियां करती   तो उसे सदा सुहागन का आशीर्वाद प्राप्त होता है तो आइए जानते हैं hartalika teej 2022 me kab hai

2022 मैं हरतालिका तीज व्रत कब है (hartalika teej 2022 me kab hai)





2022 मैं हरतालिका तीज  29 अगस्त 2022 को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को है हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विधि विधान पूर्वक पूजन किया जाता है

हरतालिका तीज पूजा का समय कुछ इस प्रकार है

तृतीया तिथि प्रारंभ 3: 25 pm  29 अगस्त 2022

तृतीया तिथि समाप्त - 3:30 pm 30 अगस्त 2022

हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि ((hartalika teej brat puja vidhi )

हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती का विधि विधान पूर्वक पूजा करें हरतालिका तीज प्रदोष काल में करना चाहिए सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त को प्रदोष काल कहा जाता है क्योंकि यह दिन और रात की मिलन का समय होता है हरतालिका तीज पूजन करने के लिए लिए  भगवान शिव माता पार्वती और गणेश जी की बालू रेत और काली मिट्टी से प्रतिमा बनाए और प्रतिमा को अपने हाथों से बनाएं

पूजा स्थल पर एक चौकी रखकर केले के पत्ते रखें और उसी केले के पत्ते पर भगवान शिव माता पार्वती और  गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें पूजा स्थल को फूलों से सजाएं इसके पश्चात सभी देवताओं का आवाहन करके माता पार्वती भगवान शिव और गणेश जी विधि पूर्वक पूजन करें


सुहाग के पिटारे में सुहाग के सारे वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाने का इस व्रत की मुख्य परंपरा है और भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है और चढ़ाया गया वस्तु अथवा वस्त्र अपने सास की चरण स्पर्श करके ब्राह्मण और ब्राह्मणी को दान करना चाहिए पूजन करने के बाद कथा सुनना चाहिए और पूरी रात जागरण करके भगवान शिव और माता पार्वती का भजन करें सुबह होने के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं तथा ककड़ी और हलवे का भोग लगाकर पारण करें


हरतालिका तीज व्रत का क्या महत्व है  (Hartalika teej brat ka kya mahayan hai)






अगर आप जानना चाहते हैं की 2022 me haratalika teej vrath kab hai तो आपको हरतालिका तीज से जुड़ी महत्व को भी जानना होगा हरतालिका तीज व्रत को विशेष महत्व दिया गया है इस दिन जो भी सुहागन स्त्रियां इस व्रत को विधि विधान पूर्वक और पूरी श्रद्धा के साथ करती है उनके 
और अगर यह व्रत कुंवारी कन्या करती हैतो उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है जिससे वह अपनी इच्छा अनुसार वर प्राप्त करते हैं यह निर्जला व्रत होता है जिसमें पूरा दिन और पूरी रात उपवास रखकर इस व्रत को पूरा किया जाता है

भाद्रपद मास में पूरी धरती हरियाली से भरी होती है जिस कारण से  हरियाली तीज भी कहा जाता है और इस दिन हाथों में मेहंदी लगा कर झूला झूलने की भी परंपरा प्रचलित है

हरतालिका तीज व्रत कथा ( hartalika teej brat katha)



यदि आप हरतालिका तीज व्रत करना चाहते हैं और आप जानना चाहते हैं कि 2022 me haratalika teej vrath kab hai और  हरतालिका तीज व्रत से जुड़ी कथा आप नहीं जानते हैं तो आइए अब हम हरतालिका तीज व्रत से जुड़ी कथा के बारे में जानते हैं शिव पुराण के अनुसार पूर्व जन्म में माता पार्वती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी और और उनका नाम सती थी माता सती का विवाह भगवान शिव से हो गया  जिसे प्रजापति दक्ष को स्वीकार नहीं था

 क्योंकि वह भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे जब उसकी पुत्री अपने पिता के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह किया तब प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री माता सती से कहा कि आज के बाद तुम हमारे घर में प्रवेश नहीं करोगी आज से हमारा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है कुछ दिनों पश्चात प्रजापति दक्ष अपने यहां एक यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसमें सभी देवी देवताओ और गंधर्व को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को उस यज्ञ के लिए आमंत्रण नहीं भेजा

अपने पिता द्वारा आमंत्रण नहीं आने पर माता सती को बुरा लगा और वह यज्ञ स्थल पर पहुंचकर अपने आप को यज्ञ कुंड में जला दिया भगवान शिव को बहुत आहत हुआ भगवान शिव माता सती का  शव लेकर वह क्रोध में आकर तांडव करने लगे 




जिसे पूरा संसार त्राहि-त्राहि करने लगा सृष्टि का विनाश होने लगा तब भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती की शरीर को  सात भागों में काट दिया जिस के वियोग में भगवान शिव वैराग्य हो गए



इसके बाद माता सती का जन्म हिमाचल के यहां माता पार्वती के रूप में हुआ और वह बचपन से ही शिव की भक्ति और पूजा करने लगी  वह भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी

लेकिन इतना सरल नहीं था क्योंकि भगवान शिव के दर्शन के लिए कितने ऋषि मुनि सहस्त्र वर्षों तक तपस्या करते हैं और माता पार्वती तो साक्षात शिव को ही पाना चाहती थी

और इसके लिए हर दिन को उपवास रखकर भगवान शिव का कठोर तपस्या करने लगी श्रावण के महीने में पूरी मास अन्य तथा जल का त्याग करके भगवान शिव का पूजन करती थी यह देख कर गिरिराज अत्यंत दुखी हो गए

एक और दिन की बात है माता पार्वती के पिता गिरिराज हिमाचल अपने महल में बैठकर विचार कर रहे थे कि हमारी पुत्री अब बड़ी हो गई है हमारे पुत्री अब विवाह के योग्य हो गई है मैं अपनी पुत्री को किसके साथ वरण करुँ इस कन्या का विवाह किसके साथ करूं

इतना विचार कर ही रहे थे कि देव योग से ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि नारद मुनि का वहां पर आगमन हुआ

महर्षि नारद को देखते हि पार्वती के पिता गिरिराज महर्षि नारद को प्रणाम किया और उसे बैठने के लिए उचित स्थान दिए

और गिरिराज ने कहा आज मेरा ओहो भाग्य है कि देवर्षि नारद हमारे यहां पधारे मेरी या भूमि आज पवित्र हो गई है मैं बड़ा भाग्यशाली हूं कि जो आज महामुनी श्रेष्ठ आपके दर्शन हुए कहिए किस प्रकार आपका यहां आगमन हुआ है और मेरे लिए क्या आज्ञा है

तब नारदजी बोले मैं नारायण का भेजा हुआ दूत हूं और प्रभु नारायण की आज्ञा से ही आया हूं तुम मेरी बात को बड़े ध्यान से सुनो मैं केवल इतना चाहता हूं तुम अपनी कन्या का दान उत्तम वर को करो ब्रह्मा इंद्र शिव आदि देवताओं मे भगवान विष्णु के समान कोई भी देवता नहीं है

मेरे मत से तुम अपनी पुत्री का दान भगवान विष्णु को दे दो तो अति उत्तम रहेगा नारद जी की बात सुनकर राजा हिमांचल बोले कि यदि भगवान वासुदेव स्वयं ही मेरी पुत्री को ग्रहण करना चाहते हैं मेरी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं तो फिर इस कार्य के लिए आपका आगमन हुआ तो यह मेरे लिए परम गौरव की बात है मैं तो धन्य हो गया हूं कि साक्षात नारायण मेरी पुत्री का वरण करना चाहते हैं मैं अवश्य ही अपनी कन्या का दान उनको कर दूंगा हिमाचल की यह बात सुनते ही देवर्षि नारद उसी समय आकाश मार्ग से अंतर्ध्यान हो गए

और शंख चक्र पदम गदाधारी भगवान विष्णु के पास पहुंचे नारद जी हाथ जोड़कर के पहले प्रभु को प्रणाम किया और प्रभु से निवेदन किया कि है प्रभु आपका विवाह कार्य निश्चिंत हो चुका है

हिमाचल में प्रसन्नता पूर्वक कहा है कि वह अपनी पुत्री का नाम भगवान विष्णु को अवश्य ही करेंगे यानी आप का विवाह हिमांचल की पुत्री के साथ निश्चित हो गया है नारद मुनि की बात सुनकर प्रभु मन मंद मुस्काए उन्होंने कुछ नहीं बोला क्योंकि वह तो अंतर्यामी है वह तो सब जानते हैं कि हिमांचल की कन्या का विवाह किसके साथ होना है लेकिन प्रभु नारद जी की आगरा को अस्वीकार नहीं कर पाया और मुस्कुराते रहें

इधर जैसे ही हिमाचल के पुत्री को पिता के वचन का पता लगा पिता के वाक्यों को सुनते ही पार्वती जी अपनी सहेली के घर गई और पृथ्वी पर गिर कर अत्यंत दुखी होकर विलाप करने लगी और रोने लगी उनको विलाप करते हुए देखकर उनकी एक सखी बोली तुम किस कारण से दुख प्राप्त कर रही हो तुम किस कारण से इतना रुदन कर रही हो मैं अवश्य ही तुम्हारे दुख का कारण जानना चाहती हूं

और तुम्हारे दुख को दूर करने का उपाय भी मैं करूंगी तब पार्वती जी बोली हे सखी सुन मैं अपनी मन की अभिलाषा तुमको सुनाती हूं मैं साक्षात महादेव को अपना पति बनाना चाहती हूं और उनको वरण करना चाहते हूं

इसमें कोई भी संशय नहीं है और मेरे पिता श्री मेरा वरन दूसरे के साथ करना चाह रहे हैं मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ में करना चाह रहे हैं

और मैं मन ही मन भगवान शंकर को अपना पति मान चुकी हूं मैं महादेव के सिवा अन्य किसी के साथ विवाह नहीं करूंगी मैं विवाह करूंगी तो सिर्फ महादेव से ही अगर मेरे पिताश्री भगवान शिव से नहीं कर कर अन्य किसी के साथ मेरा विवाह करेंगे तो मैं अपने प्राणों को त्याग दूंगी तब पार्वती के इन वचनों को सुनकर उनकी सखी ने कहा की हे देवी जिस वन को तुम्हारे पिता ने कभी नहीं देखा हूं तुम वहां पर चली जाओ और माता पार्वती अपनी सखी की बात को मानकर घनघोर जंगल में चली गई

अपनी माहौल में अपनी पुत्री को ना देख कर उनके पिता हिमांचल उनको ढूंढने लगे और सोचने लगे कि मेरी पुत्री कहां अदृश्य हो गई है कि कोई देव दानव या किन्नर मेरी पुत्री को हरण करके ले गया है मैं नारद जी को वचन दिया हूं कि अपनी पुत्री को भगवान विष्णु के साथ वरण करूंगा

और राजा हिमांचल विलाप करने लगे कि अब किस प्रकार से मेरा यह वचन पूरा होगा और अपने पुत्र के वियोग में राजा हिमांचल मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े सब लोग हाहाकार करने लगे कि राजा को क्या चिंता है कि आखिर राजा इस प्रकार अनानायास मूर्छित होकर क्यों गिर पड़े

राजा हिमांचल का सभी प्रजा जन मंत्री गण दौड़े-दौड़े उनकी मुर्छा का कारण जानने लगे और हिमाचल से पूछने लगे कि हे राजन आप आनानायस क्यों मूर्छित होकर गिर पड़े कि आखिर आपको क्या चिंता है

तब हिमांचल बोले मेरे दुख का कारण यह की मेरी रत्नरूप कन्या का कोई हरण करके ले गया है या किसी शायर ने उसे डस लिया है या किसी दिन है या या व्यापर ने उसे मार डाला है ना जाने मेरी बेटी कहां चली गई है इतना कहते हैं कि राज्य दुखी होकर थरथर कांपने लगे जैसे तीव्र वायु चलने पर कोई वृक्ष कापता है

और इसके बाद गिरिराज मंत्री गण और पार्वती के सखी उन्हें ढूंढने के लिए घने वन में निकल गया

उधर माता पार्वती भी अपनी सखियों के साथ जंगल में घूमते हुए एक नदी के तट पर एक गुफा में पहुंच गई थी और उस गुफा में अपने  सखियों के साथ प्रवेश कर गई

और वहां माता पार्वती अन् और जल को त्याग कर बालू रेती का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का निरंतर आराधना करने लगे


 और उसी स्थान पर भाद्रपद माह के हस्त नक्षत्र युक्त  तृतीया तिथि के दिन विधि विधान से पूजन किया और कठोर साधना की उस कठोर साधना की प्रभाव से भगवान शिव का आसन डोलने लगा और भगवान शिव उस स्थान पर प्रकट हो गए जहां माता पार्वती अपने साथियों के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना कर रही थी  भगवान शिव माता पार्वती से कहा हे देवी मे तुम से अति प्रसन्न हूं तुम्हारी कठोर साधना मैं अत्यधिक प्रसन्न हूं तुम्हें क्या चाहिए तुम अपने मन की इच्छा हमारे सामने प्रकट करो तुम जो भी चाहोगी मैं तुम्हें वह वरदान अवश्य मिलेगा



तब माता पार्वती ने कहा हे महादेव अगर आप मेरी तपस्या और साधना से प्रसन्न हैं तो आप हमें अपने अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करें मैं आपको अपने पति के रूप में पाना चाहती हूं तब भगवान शिव तथास्तु कहकर माता पार्वती के इच्छा को पूर्ण किए और फिर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए प्रातः होते ही माता पार्वती बालू रेती से बनाई हुई शिवलिंग को जल में प्रवाहित करके व्रत का परायण किए इतने में ही हिमाचल में माता पार्वती को ढूंढते हुए वहां पहुंच गए और अपनी पुत्री को हृदय से लगाकर जोर-जोर से  रोने लगे और अपनी पुत्री से कहने लगे हे पुत्री तुम अपने महल को छोड़कर इस घने जंगल में क्यों चली आई हो

तब माता पार्वती ने कहा हे पिता श्री मैं भगवान शिव को अपने मन में ही अपने पति मान चुकी थी और उसे पाने के लिए इस जंगल में तपस्या करने के लिए आई हूं

और आप इसके विपरीत भगवान विष्णु से मेरा विवाह करवाने जा रहे थे ऐसा सुनकर हिमाचल अपनी पुत्री से कहा कि मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारा विवाह नहीं करूंगा मैं तुम्हारा विवाह केवल महादेव जी के साथ में ही करूंगा इस प्रकार राजा हिमांचल अपनी पुत्री को अपने घर ले गए और पूरी विधि विधान के साथ पार्वती का विवाह महादेव के साथ संपन्न हुआ

उसी व्रत के प्रभाव से माता पार्वती को महादेव की प्राप्ति हुई और माता पार्वती महादेव की अर्धांगिनी हुई और तभी से हरतालिका तीज व्रत मनाने की परंपरा शुरू हुई है और तभी से हरतालिका तीज व्रत मनाया जा रहा है

इस व्रत का नाम हरतालिका तीज क्यों पड़ा


माता पार्वती जब अपने सखियों के साथ जंगल में चली गई यानी माता पार्वती की सखियां माता पार्वती को  हरण करके जंगल ले गई जिस कारण से इस व्रत का नाम हरतालिका तीज व्रत पड़ा

हरतालिका तीज व्रत करने से क्या लाभ मिलेगा


सौभाग्य और अपने जीवन की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली स्त्री को इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए जो भी स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत को करती है उनकी पति की लंबी आयु होती हैं तथा उनको जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है अगर यह व्रत कोई विधवा महिलाएं करती हैं जिनके पति का स्वर्गवास हो चुका है जो वृद्धावस्था में आ चुकी हैं जिन्हें हम कल्याणी कहते हैं वह यदि इस व्रत को करती हैं तो उसे अगले जन्म में उत्तम पति की प्राप्ति होगी उनका दुर्भाग्य समाप्त हो जाएगा

हरतालिका व्रत कैसे करें ? (hatalika teej brat kaise kare )




हरतालिका तीज व्रत को करने के लिए केले की खंबे से मंडप बनाकर फूल मालाओं से सुशोभित करना चाहिए और वीवेदर रंगों से रेशमी वस्त्र की चांदनी तान देनी चाहिए उसके बाद चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों से लेपन करके स्त्रिया एकत्र होकर शंख भैरवी मृदंग आदि बजाएं विधिपूर्वक मंगल चार्य करें गीत गाए तथा गोरा और शंकर जी की प्रतिमा की स्थापना करें आप मिट्टी तथा बालू रेती की प्रतिमा बनाकर भी स्थापित कर सकते हैं इसके बाद शिव जी पार्वती जी का गंध  धूप दीप पुष्प आदि शिव भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें

अनेक प्रकार के निवेद मिठाईयों का भोग लगाएं रात्रि में जागरण करें इस व्रत में पूरी रात जागरण किया जाता है

नारियल सुपारी जवारी नींबू लोंग अनार नारंगी जनेऊ जोड़ा कलावा अनेक प्रकार के पत्ते एवं पुष्प से भगवान की पूजन करें बेलपत्र धतूरे के पुष्प आम के पत्ते और सभी वृक्षों के पति प्रभु को समर्पित किए जाते हैं और और अनेक प्रकार के फल एकत्रित करके भगवान को चढ़ाना चाहिए इसके बाद धूप दीप से भगवान का पूजन करें और फिर भगवान से प्रार्थना करें यह प्रभु सदाशिव मंगल रूपी देवी महेश्वरी देवी पार्वती आप हमारी सभी मनोकामना को पूर्ण करें हे शक्ति रुपी माता पार्वती हम आप दोनों को बारंबार प्रणाम करते हैं ब्राह्मणी जगत का पालन करने वाली आपको बारंबार नमस्कार हैं
पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ हरतालिका तीज व्रत संपन्न करें

हरतालिका तीज व्रत क्यों मनाया जाता है

अपनी पति की दीर्घायु और सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सुहागिन स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत मनाती है बिन ब्याही कुंवारी लड़कियां अच्छे पति प्राप्त करने के लिए हरतालिका तीज व्रत करती है
इस व्रत को विधवा स्त्री भी करती हैं विधवा और बुजुर्ग स्त्री अगले जन्म में अच्छे वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज व्रत करती है इस व्रत को करने से आदि शक्ति रुपी महादेवी पार्वती और भगवान शंकर भोलेनाथ की कृपा सदैव बनी रहती है और भगवान गणेश आने वाली विपदा से सदैव उनकी रक्षा करती है



अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1 हरतालिका तीज व्रत प्रथम बार किसने किया था ? (hartalika teej brat pehli bar kisne kiya that )




 Ans - हरतालिका तीज व्रत सर्वप्रथम माता पार्वती भगवान शिव को अपने वर के रूप में पाने के लिए की थी माता पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप की जिससे भगवान शिव को माता पार्वती को वरदान के रूप में स्वीकार किया

2 हरतालिका तीज व्रत करने से हमें क्या लाभ मिलता है


Ans हरतालिका तीज व्रत करने से सुहागन स्त्री की पति को लंबी आयु का वरदान मिलता है उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है पूरे जीवन में धन की कमी नहीं होती हैं पति पत्नी में आपसी प्रेम सदैव बनी रहती है और पूरा जीवन सुखी पूर्वक व्यतीत करते हैं

3 हरतालिका तीज व्रत में किसकी पूजा की जाती है ? ( hartalika teej brat me kiski puja ki jati hai)

Ans - हरतालिका तीज व्रत में भगवान शंकर माता पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है

अंतिम शब्द

दोस्तों आज हमने आपको बताया कि हरतालिका तीज 2022 में कब है पूजा विधि क्या है शुभ मुहूर्त कौन सा है कितने तारीख को है हरतालिका तीज व्रत कैसे मनाएं पूरी जानकारी आज हमने आपको दी है जिसे पढ़कर आप यह जान पाएंगे कि हरतालिका तीज 2022 में कब है और इसे कैसे मनाए

मैं आशा करता हूं कि आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा आप जान गए होंगे कि 2022 में हरतालिका तीज व्रत कब है और इसे कैसे मनाएं अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें अगर इस पोस्ट से जुड़ी कोई सवाल आपके मन में हो तो कमेंट में हमें जरूर बताएं









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