दोस्तों आज का लेख महिलाएं और लड़कियों के लिए है आज हम आपको masik Dharm me vrat karna chahiye ya nahi - मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं विस्तार से बताएंगे।
दोस्तों महिलाओं और व्रत का बहुत ही ज्यादा गहरा रिश्ता होता है हर महिला व्रत त्यौहार में बहुत ज्यादा विश्वास रखती है बहुत ही ज्यादा उनकी आस्था होती है कोई भी व्रत करती है, अपनी पूरी आस्था के साथ करती है पूरी श्रद्धा के साथ करती हैं तो हम यही चाहते हैं कि हमारा जो व्रत है वह अखंड रहे, वह पूर्ण हो और उसमें किसी भी तरह की रुकावट ना आए।
लेकिन दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि महिलाओं के साथ महीने में एक बार वह 5 दिन जो होते हैं वह व्रत नहीं रख सकती पूजा पाठ नहीं कर सकती है। जो प्रकृति का नियम है जो सभी महिलाओं के साथ होता है।
क्या वह सावधानी रखनी चाहिए व्रत करने के लिहाज से क्या हमें व्रत करनी चाहिए व्रत अगर हमने शुरू किए हुए हैं तो क्या हम व्रत को बीच में छोड़ दे, या फिर हम उपवास रखें अगर कोई व्रत कंटिन्यूटी में है और बीच में हमारा मासिक धर्म आता है तो हमें क्या करना चाहिए, किसी नए व्रत को शुरुआत करने वाले दिन ही अगर हमें पीरियड्स आ जाते हैं तो हमें फिर क्या करना चाहिए।
कोई व्रत अगर एक महीने लंबा हो जैसा कि सावन का महीना सावन व्रत बहुत सारी महिलाएं करती हैं अगर इस बीच उनका माहवारी आता हो तो क्या करे
सोमवार कंटिन्यूटी अखंडता का व्रत होता है इसको कैसे पूर्ण करें बहुत सारे व्रत ऐसे होते हैं जिसमें की हमेशा में पूजा करनी होती है अगर हमने पूजा सुबह शुरू कर दी है और हम उसके बाद हमारा मासिक धर्म शुरू हो जाता है तो क्या करना चाहिए मासिक धर्म खत्म होने के बाद हमें पूजा फिर कब से शुरू करनी चाहिए।
कब हमें शुद्ध माना जाता है जिसके बाद हम किसी भी पूजा पाठ में कैसे सनलिप्त हो सकते हैं यह ऐसे कुछ जरूरी बातें हैं जो हमें जरूर पता होनी चाहिए होती है। मासिक धर्म से जुड़ी हुई पीरियड्स महीने में एक बार जाती है और कोई भी अगर पूरे महीने का व्रत है या कोई लंबा अखंड व्रत है उसमें हमें यह परेशानी झेलनी पड़ती है।
तो दोस्तों कोई भी एक ऐसा व्रत जिसमें थोड़ा वक्त ज्यादा लगता हो चाहे वह हफ्ते का हो महीने का हो या एक महीने में कुछ व्रत आ रहे हो तो हमसे एक व्रत छूटेगा ऐसे में हमें इन बातों का जरूर ध्यान देना है जो इस लेख में मैं आपको बता रहें हैं कि आप अपने व्रत की जी मनोकामना से आपने उस व्रत को शुरू किया है उसका पूर्ण फल आपको मिलेगा और कोई शंका आपके मन में उसे व्रत को लेकर ना रहे।
मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं
हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार मासिक धर्म के दौरान व्रत रखा जा सकता है लेकिन आप पूजा पाठ नहीं कर सकते हैं अगर व्रत के दौरान मासिक धर्म आ जाता है तो ऐसी स्थिति में पूजा पाठ नहीं करना चाहिए और ना ही पूजा का सामान छूना चाहिए बल्कि आप अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य पूजा पाठ करवा सकती है। और आप उपवास रहकर व्रत का पालन कर सकती है।
पीरियड में सोमवार का व्रत करना चाहिए या नहीं
पीरियड के दौरान सोमवार का व्रत नहीं करना चाहिए अगर व्रत के दौरान पीरियड आ जाती है तो ऐसी स्थिति में आप आप व्रत कंटिन्यू रख सकती है लेकिन आप पूजा अर्चना नहीं कर सकती है। आप मन ही मन जब कर सकती है भगवान के प्रति आस्था कम न होने दे खासकर पीरियड के दौरान स्वच्छता का ध्यान जरूर दें स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही पूजा पाठ करें।
पीरियड में व्रत रख सकते हैं या नहीं
पीरियड में व्रत नहीं रखना चाहिए पीरियड के दौरान किसी भी महिला को पूजा पाठ भी नहीं करना चाहिए और ना ही पीरियड के दौरान मंदिर में जाना चाहिए लेकिन हां अगर व्रत के दौरान पीरियड आ जाती है तो ऐसी स्थिति में आप व्रत का पालन कर सकती है इसमें आपको खुद से पूजा पाठ नहीं करना होगा घर के किसी सदस्य पूजा पाठ करवा सकती है। पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ व्रत का पालन करें आपको व्रत का पूरा फल मिलेगा।
मासिक धर्म शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए या नहीं?
अगर आपका मासिक धर्म शुरू हो गया है तो आपको शिवरात्रि का व्रत नहीं करना चाहिए लेकिन अगर आपको व्रत के दौरान पीरियड आ जाता है तो आप व्रत का पालन कर सकती है इसके लिए मन नहीं है लेकिन आप पीरियड के दौरान शिवलिंग का पूजा नहीं कर सकती है आप दूर बैठकर मंत्र का जाप कर सकती है पीरियड के दौरान भी आप व्रत के सारे नियमों का पालन करें व्रत का परना भी अगले दिन कर सकती है।
मासिक धर्म में व्रत कैसे करें?
अगर व्रत के दौरान मासिक धर्म शुरू हो जाता है यानी आपको पीरियड आ जाती है तो आप व्रत कर सकते हैं।
लेकिन व्रत के दौरान आप पूजा पाठ नहीं कर सकती है। अगर आपके घर में कोई बच्चे या कोई आन सदस्य हैं तो आप उस पूजा पाठ करवा और खुद उपवास रहकर व्रत का पालन करें आप दूर रहकर पूजा को देख सकती है मन ही मन मंत्र का जाप कर सकती हैं और दूसरे दिन पारण करें महावारी खत्म होने के बाद आप पूजा पाठ कर सकती है।
- आप दूर बैठकर मित्रों का जाप कर सकते हैं।
- घर के किसी अन्य सदस्य पूजा करवाए
- दूर रहकर भगवान की आराधना करें
- पूजा पाठ के समान को न छुए
- मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखें।
व्रत के बीच में पीरियड् आ जाए तो क्या करें?
अगर कोई व्रत शुरु करता है और बीच में पीरियड आ जाता है तो शाम की पूजा नहीं करनी चाहिए व्रत का पूरा फल आपको मिलेगा अपने सुबह संकल्प लेकर व्रत की शुरुआत कर दी थी अगर सावन में हम 16 सोमवार का व्रत करते हैं तो अगर बीच में पीरियड्स आती है, अगर व्रत के दौरान पीरियड आ जाता है तो आप चाहे आपके घर में अगर पति हैं अगर आप सुहागन महिला है शादीशुदा है तो आपके पति से आप पूजा करवा सकती हैं अगर कोई बच्चा बड़ा तो बच्चे से पूजा पाठ करवा सकते हैं कथा सुन सकती है लेकिन आपको उस पूजा में संयुक्त नहीं होना है। आपका व्रत हमारा कंटिन्यू माना जाएगा व्रत अखंड रहेगा और आपको व्रत का पूरा फल मिलेगा।
पीरियड आने पर क्या मैं अपना व्रत तोड़ सकती हूं?
अगर व्रत के दौरान पीरियड आ जाती है तो आपको व्रत तोड़ने की कोई जरूरत नहीं है आप व्रत कंटिन्यू रख सकती हैं लेकिन आप पूजा पाठ नहीं कर सकते हैं मासिक धर्म के द्वारा पूजा पाठ करना वर्जित माना गया है आप अपने घर में से किसी भी सदस्य पूजा पाठ करवा सकती है आप दूर रहकर पूजा को देख सकती है और प्रार्थना कर सकती हैं।
क्या हम पीरियड्स के दौरान प्रसाद बना सकते हैं?
जी नहीं पीरियड के दौरान पूजा पाठ के कोई भी सामग्री छूना वर्जित माना गया है। ऐसे में आप पीरियड के दौरान प्रसाद नहीं बना सकते हैं। आप घर के किसी अन्य सदस्य पर प्रसाद बनवा लें।
क्या पीरियड्स के दौरान दुर्गा चालीसा पढ़ सकते हैं?
जी नहीं पीरियड के दौरान दुर्गा चालीसा नहीं पढ़ना चाहिए। हां अगर आपको दुर्गा चालीसा का पाठ याद है तो आप मन ही मन इसका जाप कर सकते हैं। लेकिन दुर्गा चालीसा का किताब से दुर्गा चालीसा नहीं पढ़ सकते हैं। दुर्गा चालीसा का किताब धार्मिक ग्रंथ माना जाता है जिसे पीरियड्स के दौरान दुर्गा चालीसा के किताब को स्पर्श करना वर्जित माना गया है।
अगर मेरा पीरियड आता है तो क्या मेरा व्रत अमान्य है?
अगर व्रत के दौरान पीरियड आता है तो आपका व्रत अमान्य नहीं हो सकता है आप व्रत को कंटिन्यू कर सकती है भले या पूजा पाठ नहीं करेंगे लेकिन आप व्रत का पालन कर सकती है और उपवास रख सकती हैं आपका व्रत अमान्य नहीं होगा आपको व्रत का पूरा फल मिलेगा।
क्या हम पीरियडस के दौरान सोमवार का व्रत कर सकते हैं?
अगर आपको पहले से ही पीरियड्स आया हुआ है तो आप सोमवार का व्रत नहीं कर सकती हैं लेकिन अगर व्रत के दौरान पीरियड्स आती है तो ऐसी स्थिति पर आप व्रत का पालन कर सकते हैं उपवास रख सकती है घर के किसी परिजन से पूजा पाठ करवा सकती है?
पीरियड में पूजा क्यों नहीं करते हैं?
धर्मशास्त्र के अनुसार कहा जाता है कि पीरियड के दौरान महिलाओं के शरीर में काफी ऊर्जा होती है। एक्सेस भगवान को सहन नहीं हो पता है जिस कारण से पीरियड में पूजा नहीं करना चाहिए।
पीरियड में क्या-क्या नहीं छूना चाहिए?
पीरियड के दौरान आचार नहीं छूना चाहिए ऐसा माना जाता है कि आचार छूने से अचार खराब हो जाता है पीरियड के दौरान पूजा पाठ वाले सामग्री नहीं छूना चाहिए किसी भी प्रतिमा को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
Conclusion
तो दोस्तों आज की लिस्ट में हमने आपको masik Dharm me vrat karna chahiye ya nhi मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं (period me vrat karna chahiye ya nahi) इस बारे में विस्तार से बताया है जिससे अगर किसी महिला या लड़की को पीरियड आ जाती है तो उसे दौरान उसकी व्रत करना चाहिए या नहीं या फिर पीरियड के दौरान व्रत कैसे करें इस बारे में पूरी जानकारी दी है अगर फिर भी इस लिंक से जुड़ी कोई भी सवाल आपके मन में हो तो कमेंट में हमें जरूर बताएं।
मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं गरुड़ पुराण
विश्व जगत में जितने लोग हैं उनके अपने-अपने विचार है जब स्त्रियों को मासिक पीड़ा होती है तो कुछ लोग स्त्रियों को अछूत समझने लगते हैं मित्रों मैं आपको एक कथा के माध्यम से बताऊंगा कि स्त्री को मासिक पीड़ा क्यों होती है। मासिक धर्म व्रत करना चाहिए या नहीं मित्रों एक बार देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं प्रभु आज मेरे मन में एक प्रश्न को लेकर शंका उत्पन्न हो रही है हे नाथ इस विश्व जगत में केवल आप ही मेरे मन में उठ रही मेरी इस शंका का समाधान कर सकते हैं।
भगवान विष्णु ने कहा कि है प्रिय तुम्हारे मन में जो भी प्रश्न है जिसकी वजह से तुमको शंका हो रही है वह तुम निशंक होकर पूछो मैं तुम्हारे मन में उठ रही सभी शंकाओं का समाधान अवश्य करूंगा तब माता लक्ष्मी जी कहती हैं वह कौन सा श्राप है जिसके कारण स्त्रियों को मासिक धर्म की पीड़ा सहन करनी पड़ती है।
माता लक्ष्मी ने अपना दूसरा प्रश्न पूछते हुए कहा कि मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि प्रभु एक राजसविला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए जिससे वह अपने ऊपर लगने वाले पाप से बच सके तो भगवान विष्णु कहते हैं है देवी लक्ष्मी तुमने संपूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु अत्यंत उत्तम प्रश्न किया है।
है देवी लक्ष्मी मैं तुम्हारे इन सभी प्रश्नों का उत्तर तुम्हें सुखदेव नामक एक पुरुष के जीवन में हुई घटनाओं के माध्यम से दूंगा जिससे तुम्हें तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर इस कथा के माध्यम से प्राप्त हो जाएगा यह कथा इतनी पवन है कि इस कथा के श्रवण करने मात्र से ही समस्त मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
जो भी गृहस्थ जीवन में है वह पति-पत्नी इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनते हैं तो उन्हें सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है इसीलिए है देवी लक्ष्मी में जो कथा आपको सुनाने जा रहा हूं आप भी इस कथा को ध्यानपूर्वक पूरा अंत तक अवश्य सुनना अब देवी लक्ष्मी कहती है उनके जीवन में कौन घटनाएं हुई थी हे प्रभु मैं इस कथा को सुनने के लिए उतावली हो रही हूं कृपया आप इस कथा को मुझे सुनाई मैं इसे ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य सुनूंगी और संपूर्ण विश्व जगत में विख्यात भी करूंगी।
तब भगवान विष्णु कथा सुनना आरंभ करते हैं और कहते हैं कि है देवी लक्ष्मी पूर्व कल की बात है निर्मल देश में एक अत्यंत शोभायमन नगरी थी उस नगरी में सुखदेव नाम के एक ब्राह्मण रहा करते थे सुखदेव को समस्त वेदों और शास्त्रों का ज्ञान था वह एक तेजवान और परम बुद्धिमान ज्ञानमान तथा धर्म के मार्ग में खुद की आहुति दे देने वाला एक ब्राह्मण था।
सभी वर्णों के लोग सुखदेव को बड़ा सम्मान देते थे सुखदेव प्रतिदिन यज्ञ करता था दान धर्म के साथ संध्या उपासना भी किया करता था सुखदेव पशु पुत्र बंधु बांधव तथा धन संपत्ति से संपन्न थे सुखदेव की पत्नी का नाम तपस्या थी वह भी अत्यंत चरित्रवान गुणवान तथा पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली स्त्री थी।
एक दिन सुखदेव और उसकी पत्नी तपस्या ने मिलकर अपने घर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा रखी और सभी ब्राह्मणों को स्वयं जाकर निमंत्रण दिया साथ ही नगर में निवास करने वाले समस्त मनुष्यों को उसने पूजा के लिए बुलाया सुखदेव की पत्नी तपस्या ने अपने घर पर भांति भांति प्रकार का भोजन भी बनाया था और सभी को भोजन के लिए बुलाया उसके बाद पूजा के दिन समस्त ब्राह्मण उसके घर पर पधारे।
सुखदेव ने सभी ब्राह्मणों का विधिपूर्वक पूजन किया और उन सभी का बड़े ही प्रेम के साथ आदर सत्कार किया फिर सुखदेव ने सभी ब्राह्मणों को घर के अंदर बुलाया और उन्हें आसान देकर प्रेम के साथ बिठाकर भोजन कराया ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनकी भूख की तृप्ति समाप्त करने के बाद सुखदेव ने भगवान का स्मरण करते हुए जिन-जिन को सुखदेव ने बुलाया था उन सभी को वस्त्र आदि का दान करके विदा किया।
वे सभी ब्राह्मण सुखदेव को आशीर्वाद देकर वहां से प्रस्थान कर गए उसके बाद सुखदेव ने अपने परिवार के सभी मित्र बंधु बांधव तथा अनेक दिन और भूखे लोगों को भोजन करवाया इस प्रकार से सुखदेव ने सभी को भोजन कराकर और पूजा संपन्न करके सभी को विदा करके जब वह ब्राह्मण सुखदेव अपने घर के द्वारा के सामने गया।
तो उसने देखा कि देखा कि उसके घर के सामने एक कुत्ता और सारणी आपस में कुछ बात कर रहे थे जब ब्राह्मण सुखदेव ने उसे कुत्ते और सुअरणी की पूरी बात सुनी तो सुखदेव को बड़ा आश्चर्य हुआ वह कुत्ता और सुअरणी उसके माता-पिता ही थे जो पिछले जन्म के पाप कर्मों को करने के कारण इस जन्म में कुत्ता और सुअरणी बन गए हैं।
तब वह ब्राह्मण सुखदेव मन ही मन सोचने लगा यह दोनों तो साक्षात मेरे माता-पिता है जो मेरे घर पर पशु बनकर आए हैं भगवान ने किस कारण से इन दोनों को पशु बना दिया है किस पाप के कारण मेरे माता-पिता को यह पशु का शरीर प्राप्त हुआ है सुखदेव ने सोचा कि अब मैं उनके उद्धार के लिए क्या करूं इस प्रकार विचार करते हुए सुखदेव ब्राह्मण को रात भर नींद नहीं आई और वह रात भर भगवान का स्मरण करते हुए वह सोच विचार करने लगा।
उसने सोचा कि मैं अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए क्या करूं तब उसे याद आया कि मेरे माता-पिता की आत्मा की मुक्ति का उपाय केवल मुनि वशिष्ट जी ही बता सकते हैं सुबह होते ही सुखदेव ने स्नान आदि कार्य संपन्न करके मुनि वशिष्ट जी से मिलने के लिए उनके आश्रम पर जा पहुंचा।
आश्रम के अंदर प्रवेश करते ही मुनि वशिष्ट जी ने सुखदेव का स्वागत किया और वशिष्ठ जी सुखदेव से कहने लगेदेव ब्राह्मण श्रेष्ठ आप आज किस कारण से हमारे आश्रम में पधारे हैं है ब्राह्मण श्रेष्ठ आप बड़े दुखी जान पड़ रहे हैं आपके दुख का कारण क्या है।
सुखदेव कहता है हे मुनिवर आपको मेरा प्रेम भरा प्रणाम हे मुनिवर आज आपके दर्शन मात्र से मेरा जन्म सफल हो गया है परंतु हे मुनीश्वर यहां आज मैं आपके पास अपनी एक शंका को लेकर आया हूं कृपया आप ही मुझे इस दुख से बाहर निकले।
हे भगवान मुझे इस शंका से आजाद करें मैं अत्यंत दुखी और दुर्बल हो गया हूं वशिष्ठ जी ने आगे कहा कि ही ब्रह्म देव आप दुखी मत होइए आपकी जो भी शंका है वह निसंकोच होकर मुझसे पूछो मैं अवश्य तुम्हारी शंका का समाधान करूंगा।
फिर सुखदेव कहता है हे मुनिवर कल मैं अपने घर पर भगवान सत्यनारायण का पूजन करवाया तथा अनेक ब्राह्मण को और भूखे लोगों को भोजन कराया मैं सब कुछ विधिपूर्वक पूजन किया फिर जब मैं अपने घर के बाहर अपने मेहमानों को अपने द्वारा तक छोड़ने आया तो मैंने देखा कि मेरे द्वारा पर एक कुत्ता और एक सुअरणी दोनों मेरे घर के सामने खड़े होकर बात कर रहे थे।
सबसे पहले कुत्ता उस सुअरणी से इस प्रकार से कहने लगा कि देखो आज देखो कैसी घटना घटी हमारे पुत्र के घर में ब्राह्मणों के भजन के लिए जो दूध रखा था एक सांप ने उस दूध के बर्तन में अपना विश् उगल दिया था जिसे देखकर मुझे बड़ी चिंता होने लगी।
क्योंकि इस दूध से भोजन बनने वाला था अगर मेरे पुत्र के घर पर उसे विष के दूध से कुछ बनाया जाता और सभी लोग उसे दूध को खा लेते तो उन सब की मृत्यु हो जाती इसीलिए मैंने उसे बर्तन में से सारा दूध पी लिया लेकिन जब मेरी बहू की दृष्टि मुझ पर पड़ी तब उसने मुझे डंडों से खूब पीटा जिससे मेरे शरीर का अंग भंग हो गया अब मुझे बहुत पीड़ा हो रही है और इसी वजह से मैं लड़खड़ाते हुए चल रहा हूं मुझे यह पीड़ा सहन नहीं हो रही है।
कुत्ते की बात को सुनकर वह सुअरणी बहुत दुखी हो गई और वह अपना वृत्तांत सुनाने लगी और बोली की है प्रीतम अब मैं तुम्हें मेरे दुख का कारण सुनाती हूं पूर्व जन्म में इस ब्राह्मण की माता थी परंतु आज इस ब्राह्मण ने सभी लोगों को भोजन कराया किंतु इसने मेरे सामने घास तक नहीं डाली और ना ही मुझे जल पिलाया।
सुखदेव बोला कि हे मुनिवर इसी कारण से मैं बहुत दुखी हो गया फिर सुखदेव कहने लगा इस प्रकार से अपने माता-पिता को कुत्ते और सुअरणी के रूप में ऐसा बोलते हुए देखकर मुझे बड़ा दुख हो रहा है।
हे मुनिवर मुझे रात भर नींद नहीं आ रही है हर क्षण मुझे बस यही चिंता सताए जा रही है कि मैं कभी कोई पाप नहीं किया है हमेशा धर्म के कार्य किए हैं परंतु फिर भी मेरे माता-पिता को ऐसे कष्ट झेलना पड़ रहे हैं हे मुनिवर यही मेरी शंका है इसी कारण से आज मैं आपके पास आया हूं कृपया आप अपनी दिव्य शक्ति से पता करके मुझे बताइए कि किस कारण से मेरे माता-पिता की ऐसी दुर्दशा हुई है और उनकी मुक्ति के लिए मुझे कौन सा कर्म करना होगा।
तब मुनि वशिष्ट जी ने ध्यान लगाते हुए वह सब कुछ देख लिया और उसे ब्रह्म सुखदेव के माता-पिता के पूर्व जन्म के कर्मों के बारे में सुखदेव से कहने लगते हैं है ब्राह्मण सुखदेव तुम्हारे माता-पिता ने पिछले जन्म में घोर पाप किया है इस पाप कर्मों के कारण आज उनकी ऐसी दुर्दशा हुई है।
सुखदेव कहने लगता है कि हे गुरुदेव कौन से पाप के कारण मेरे माता-पिता की दुर्दशा हुई है कृपया मुझे उसके बारे में विस्तार से बताने की कृपा करें मैं जानना चाहता हूं फिर मुनि वशिष्ट जी कहते हैं कि है ब्राह्मण सुखदेव तुम ध्यान से सुनो यह कुत्ता जो तुम्हारे पिता है यह पिछले जन्म में वसंत नगर के श्रेष्ठ ब्राह्मण हुआ करते थे इन्होंने एक दिन एकादशी का व्रत रखा परंतु यह उसका पालन न कर सके और भोजन कर लिया था।
एकादशी के व्रत के दिन तुम्हारे पिता ने दान धर्म भी नहीं किया इन्होंने अपने द्वार पर आए हुए कुत्तों को कभी भोजन नहीं खिलाया तुम्हारे पिता ने अपने पितरों का श्राद्ध भी विधिपूर्वक नहीं किया।
तुम्हारे पिता ने पिछले जन्म में मासिक धर्म के दौरान ही तुम्हारी माता के साथ संबंध बनाया था और इसी पाप के कारण तुम्हारे पिताजी को इस जन्म में कुत्ते का जन्म मिला है।
है ब्राह्मण पुत्र अब तुम अपनी माता के बारे में सुनो तुम्हारी माता ने राजसविला होते हुए भी भोजन बनाया मासिक धर्म के दौरान ही इसने भगवान की पूजा उपासना की तुलसी को जल चढ़ाया राजस्वबिल होते हुए भी तुम्हारी माता ने भगवान को भोग लगाया इसी कारण से इस महा पाप लगा है।
मासिक धर्म के दौरान स्त्री तीन से पांच दिनों के लिए अपवित्र हो जाती है मासिक धर्म के दौरान स्त्री को पूजा पाठ नहीं करना चाहिए ना ही सत्संग करना चाहिए प्रत्येक स्त्री को इन तीन से पांच दिनों में अपने बाल भी नहीं धोने चाहिए इससे उसके पति की आयु कम होती है।
मासिक धर्म के दौरान पेड़ पौधों को स्पर्श नहीं करना चाहिए प्रत्येक राजसविला स्त्री के साथ संबंध भी नहीं बनना चाहिए वह मुनिवर अब आगे कहते हैं कि जो पुरुष राजसविला स्त्री के साथ संबंध बनाता है उसे ब्रह्म हत्या का पाप लगता है जो पुरुष राजसविला स्त्री को स्पर्श करता है उसे भी पाप लगता है।
राजसविला स्त्री के शरीर में 3 से 5 दिनों तक ब्रह्म हत्या का पाप निवास करता है और छठवें दिन ही वह स्नान करके पवित्र हो जाती है छठवें दिन स्नान करने के पश्चात राजसविला स्त्री को अपने पति का मुख देखना चाहिए अन्य किसी पुरुष का मुख नहीं देखना चाहिए।
यदि पति समीप ना हो तो सूर्य देव के दर्शन करने चाहिए गुरु वशिष्ठ सुखदेव से कहते हैं है ब्राह्मण श्रेष्ठ इसी पाप के कारण तुम्हारे पिता को कुत्ते और तुम्हारी माता को सूअर नहीं का जन्म प्राप्त हुआ है सुखदेव कहता है हे मुनिवर अब आप मुझे मेरे माता-पिता की मुक्ति के लिए उपाय बताने की कृपा करें।
तब वशिष्ठ जी अपनी दिव्य दृष्टि से इसका मार्ग भी देख लेते हैं और कहते हैं कि है ब्राह्मण तुम किसी भी अमावस्या के दिन अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए श्रद्धा तथा तर्पण करो और दान धर्म करो, गाय की सेवा करो और गौ माता को भोग खिलाओ और अपने माता-पिता की मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करो।
सुखदेव जैसा वशिष्ठ जी कहते हैं वही करता है और फिर उसके माता-पिता को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है अब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी से कहते हैं है देवी अब मैं तुम्हें राजसविला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए इस विषय में बता दिया है।
है देवी अब मैं तुम्हें यह बताता हूं कि किस श्राप के कारण से प्रत्येक स्त्री जाति को मासिक धर्म की कठोर पीड़ा को सहन करना पड़ता है तब देवी लक्ष्मी बोली हे नाथ आपके इस प्रश्न के उत्तर से प्रत्येक स्त्री जाति की रक्षा होगी मैं स्वयं उनके साथ रहकर उनको इस विषय में मार्ग प्रदान करूंगी तब भगवान विष्णु कहते हैं कि है देवी ठीक है मैं तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर भी दे देता हूं।
संयुग़ में कल्कीय के नाम का एक प्रसिद्ध दानव हुआ करते दानव होने के कारण उनका स्वभाव दानवीय प्रवृत्ति का था और वह हमेशा ही युद्ध करने के लिए तत्पर रहते थे फिर अचानक से एक दिन सभी दानव वृत्रासुर दानव के साथ मिलकर स्वर्ग लोक पर आक्रमण करने लगते हैं।
उन असुरों के पास भयंकर शक्तिशाली अस्त्र खंजर थे जिसका सभी देवता सामना न कर सके स्वर्ग लोक से भाग कर ब्रह्मदेव के पास आ गए फिर उन्होंने ब्रह्मा जी को सब कुछ कह सुनाया तब ब्रह्मदेव ने उन्हें असुरों को परास्त करने का उपाय बताते हुए कहा।
है इंद्र तुम इसी क्षण महर्षि दाधीच के पास चले जाओ वे तुम्हें अपनी शरीर की हड्डियों से तुम्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान करेंगे और तुम उन्हें अस्त्रों का प्रयोग करकेतुम मित्र असुर का वध कर सकोगे फिर सभी देवता महर्षि दाधीच के आश्रम पर जाते हैं और वह सभी उनसे प्रार्थना करते हैं और दाधीच महर्षि से अस्त्र प्रदान करने की विनती करते हैं।
फिर संसार के कल्याण के लिए महर्षि दाधीच अपनी ही शरीर की हड्डियों से अस्त्र का निर्माण करते हैं उन्हें अस्त्रों में से एक वज्र नाम का अस्त्र होता है जिस अस्त्र को देवराज इंद्र धारण कर लेते हैं फिर से सभी देवता गण वृत्रासुर के साथ युद्ध करने के लिए निकल जाते हैं उसके उपरांत देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध होता है।
सभी देवता आकाश में दोनों से युद्ध करने के लिए एकत्रित हो जाते हैं उन सभी पर प्रहार करने लगते हैं कई दिनों तक इस प्रकार से दैत्यों और देवताओं के बीच में भीषण युद्ध चलता है फिर देवराज इंद्र और वृतराशुर आमने-सामने आ जाते हैं दोनों के बीच भीषण युद्ध होता है।
और देवराज इंद्र अपने वज्र का प्रहार करके वृत्रासुर को मार डालते हैं उसके शरीर में एक ब्रह्म हत्या वास करती थी वह उसे दानव वृत्रासुर की मृत्यु होते ही उसके शरीर से ब्रह्म हत्या बाहर निकलती है और इंद्र का पीछा करने लगती है फिर वह ब्रह्म हत्या देवराज इंद्र के शरीर में प्रवेश कर लेती है।
जिससे इंद्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगता है देवराज इंद्र ब्रह्मदेव के पास जाते हैं और उनसे ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने का उपाय पूछते हैं ब्रह्मदेव उसे ब्रह्म हत्या को इंद्र के शरीर से निकलने की आज्ञा देते हैं और वह ब्रह्म हत्या इंद्र के शरीर से बाहर निकलकर ब्रह्मदेव से कहने लगती है।
हे परमपिता ब्रह्मा अभी तक में वृत्त और के शरीर में निवास कर रही थी क्योंकि उसने अनेक ब्राह्मण की हत्याएं की थी जब इंद्र ने वृत्त और की हत्या की तो मैं इंद्र के शरीर में वास करने लगी अब आप ही मुझे कोई उचित स्थान दीजिए जहां पर मैं रह सकूं।
फिर ब्रह्मदेव कहते हैं ही ब्रह्म हत्या मैं तुम्हें उचित स्थान देता हूं ब्रह्मदेव ने ब्रह्म हत्या के कर भाग कर दिए और कहा है ब्रह्म हत्या तुम्हारा एक चौथाई भाग अग्नि के भीतर रहेगा क्योंकि जो भी मनुष्य अग्नि को आहुति नहीं देगा तुम उसके शरीर में प्रवेश कर लेना ब्रह्मदेव ने फिर कहा कि तुम्हारा दूसरा एक चौथाई भाग जल के भीतर रहेगा जो भी जल में थकेगा अथवा जल में मल मूत्र का त्याग करेगा तुम उसके शरीर में प्रवेश करोगी।
फिर तीसरा एक चौथाई भाग पेड़ पौधों और वृक्षों के भीतर रहेगा जो भी मनुष्य कारण ही वृक्षों को काटेगा उसे भी ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा उसके बाद ब्रह्मदेव ने अप्सराओं को बुलाया और कहा है अप्सराओं इस ब्रह्म हत्या का एक चौथाई भाग तुम ग्रहण करो।
फिर अप्सराय कहने लगी है प्रभु अगर आपकी यही आजा है तो हम इसे आपकी आज्ञा से हम ग्रहण करने के लिए तैयार है किंतु हमें भी इससे मुक्तिका कोई उपाय बताइए फिर ब्रह्मदेव कहने वालों की है अप्सराओं जो भी पुरुष राजसविला स्त्री के साथ संबंध बनाएगा उसके अंदर यह ब्रह्म हत्या प्रवेश कर जाएगी।
इस प्रकार से ब्रह्म हत्या के कर भाग हुए एक अग्नि में दूसरा जल में तीसरा वर्षों में और चौथा स्त्रियों के अंदर प्रवेश कर गया इस ब्रह्म हत्या के भाग के कारण स्त्रियों को मासिक धर्म आता है जो भी पुरुष मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को स्पर्श करता है अथवा उनके साथ संबंध बनाता है उसे ब्रह्म हत्या का पाप लगता है।
अब आगे भगवान विष्णु कहते हैं है देवी इस प्रकार से मैंने आपको स्त्री के राजसविला होने के पीछे की कथा और राजसविला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए इसके विषय में बता दिया है अब माता लक्ष्मी रहती है।
हे प्रभु आज आपने मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञान दिया है मैं भी आपको वचन देता हूं जो भी स्त्री मासिक धर्म के दौरान पूजा पाठ करेगी पति के साथ संबंध रखेगी उसके घर में मैं प्रवेश नहीं करूंगी तो मित्रों यही कारण है की मासिक धर्म के दौरान किसी भी स्त्री को छूना पाप माना गया है मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को यह कार्य नहीं करने चाहिए।
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