नमस्कार दोस्तों आज के लेख में हम आपको तुलसी विवाह के बारे में बताने जा रहे हैं तुलसी विवाह कब है 2023 इसके साथ ही हम आपको तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त पूजा विधि व्रत कथा और तुलसी विवाह कैसे करें Tulsi vivah 2023 date and time इस बारे में पूरी जानकारी देंगे मित्रों वर्ष 2023 में तुलसी विवाह कब किया जाएगा पूजा करने का शुभ मुहूर्त कब है पूजा विधि क्या है जानेंगे इस लेख में
मित्रों हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है इस दिन को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन को तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम का विवाह किया जाता है तुलसी और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम का विवाह किया जाता है मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की लंबी निद्रा के बाद जागते हैं इसके साथ ही सारे शुभ मुहूर्त खुल जाते हैं और इस दिन यानी देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास की समाप्ति होती है
तुलसी विवाह कब है 2023 tulsi vivah kab hai 2023
वर्ष 2023 में तुलसी तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 24 नवंबर दिन शुक्रवार को किया जाएगा द्वादशी तिथि शुरू होगी 23 नवंबर 2023 को रात 9:01 पर द्वादशी तिथि समाप्त होगी 24 नवंबर 2023 को शाम 7:06 मिनट पर
इसके बाद तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न किया जाता है शास्त्रों की अनुसार तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है और इसके अलावा तुलसी विवाह विधि विधान के साथ संपन्न करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है तुलसी विवाह करने से पहले शुद्ध स्नान करने के बाद एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें और इसके बगल में एक जल से भरा कलश रखें और उसके ऊपर आम के पांच पत्ती रख दे और तुलसी के गमले में गेरू लगाकर घी का दीपक जलाएं इसके बाद तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें और रोली चंदन का टीका लगाए और तुलसी के गमले में ही गाने से मंडप बनाएं इसके बाद तुलसी को सुहाग का प्रतीक मानकर उन पर लाल चुनरी ओढ़ाए और उनका दुल्हन की तरह सिंगर करें इसके बाद शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करें इसके बाद आरती करें और तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद बांटकर पूजा संपन्न करें
2023 me Tulsi vivah kab hai
बात करेंगे तुलसी विवाह साल 2023 में कब किया जाएगा और इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा इसके अलावा हम जानेंगे तुलसी विवाह के संपूर्ण पूजा विधि क्या है तो लिए शुरू करते हैं दोस्तों हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है हिंदू धर्म में तुलसी को एक पवित्र पौधे के रूप में जानते हैं तुलसी जी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है इस दिन तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु जी के स्वरुप शालिग्राम से कराया जाता है आपको बता दें की आसान शुक्ल पक्ष की देव सैनी एकादशी से श्री हरि विष्णु चार महीने के लिए योग्य मित्र में लीन हो जाते हैं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जगते हैं भगवान विष्णु के जाग्रत होने के बाद उनके शालिग्राम अवतार के साथ ही तुलसी जी का विवाह करने की परंपरा है
तुलसी विवाह का महत्व Tulsi Vivah ka mahatva
ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से 1000 अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है तुलसी विवाह के दिन तुलसी जी और शालिग्राम का विवाह करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है और भक्त की समस्त मनोकामना पूर्ण होती है आपको बता दें कि तुलसी विवाह के बाद ही मांगलिक कार्य की पुनः शुरुआत हो जाती है
आप तुलसी विवाह के दिन प्रात: काल सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके धारण करें इसके बाद तुलसी विवाह पूजन संध्या काल में ही करें तो यह सर्वोत्तम माना गया है आप तुलसी विवाह के लिए एक चौकी में वस्त्र दिखाएं और उसमें तुलसीजी का पौधा और शालिग्राम स्थापित करें इसके बाद आप तुलसी जी और शालिग्राम में गंगाजल का छिड़काव करें फिर चौकी के पास एक कलश की स्थापना करें उसके ऊपर दीप प्रचलित करें अब आप तुलसी और शालिग्राम को होली चंदन का तिलक अर्पित करें और तुलसी के गमले के पास गन्ने का मंडप बनाएं अब आप तुलसी जी को सिंदूर लाल चुनरी अर्पित करें और उनका विधवा श्रृंगार करें अब हाथ में शालिग्राम रखकर तुलसी जी की सात बार परिक्रमा करें फिर दूध दीप जलाकर उनकी आरती करें इस तरह से पूजन समाप्त करने के बाद हाथ जोड़कर तुलसी माता और भगवान शालिग्राम से सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करें
Tulsi vivah 2023 date and time 2023 में तुलसी विवाह कब है
चलिए हम जानते हैं कि साल 2023 में तुलसी विवाहकाब है तुलसी विवाह कब कराया जाएगा या तो आपको बता दें की एकादशी तिथि की शुरुआत 22 नवंबर 2023 को रात 12:03 पर शुरू हो जाएगी और एकादशी तिथि के समाप्ति 23 नवंबर 2020 की रात को 9:01 पर हो गई तो इस बार देवउठनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर 2023 दिन गुरुवार को किया जाएगा और द्वादशी तिथि की शुरुआत 23 नवंबर 2023 की रात को 9:01 पर होगी और द्वादशी तिथि की समाप्ति 24 नवंबर 2023 की शाम को 7:06 पर होगी तो ऐसे में जो लोग देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं तो वह लोग 23 नवंबर 2023 दिन बुधवार को तुलसी विवाह कराएंगे और जो लोग द्वादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं तो वह लोग 24 नवंबर 2023 दिन शुक्रवार को तुलसी जी का विवाह का आयोजन करेंगे
कहते हैं कि इस दिन देवताओं के उठने का समय शुरू हो जाता है और इसी दिन तुलसी माता की शादी भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम जी के साथ हुई थी और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है तुलसी विवाह को हिंदू धर्म में अति शुभ माना गया है क्यों की तुलसी विवाह के साथ ही घर में विवाह जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं इसके अलावा तुलसी माता जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है कहते हैं कि इस विवाह को करने से कन्यादान जितना पुण्य मिलता है
तुलसी विवाह व्रत कथा Tulsi Vivah katha
जब निद्रावस्था में भगवान श्री हरि विष्णु जी अपने कर मांस के शहंकर में करवट लेते हैं इस कारण इस एकादशी का अत्यधिक धार्मिक महत्व है इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की विशेष पूजा की जाती है तो तुलसी दल के बिना भगवान श्री हरि विष्णु जी का पूजन अधूरा ही माना जाता है तुलसी माता को विष्णु प्रिया कहा जाता है तुलसी माता मां लक्ष्मी की है अवतार है मां लक्ष्मी को किस कारण धरती पर अवतार लेना पड़ा और वह कैसे तुलसी का पौधा बनी आज के इस लेख में कथा के द्वारा हम प्रस्तुत कर रहे हैं
एक समय मां लक्ष्मी और मां सरस्वती दोनों के बीच विवाद हो गया था कि कौन सबसे श्रेष्ठ है मां लक्ष्मी कहती की वे श्रेष्ठ है तब सरस्वती कहती की वे श्रेष्ठ है दोनों एक बात पर आते हैं कि भगवान विष्णु जी निश्चित करेंगे कि कौन सबसे श्रेष्ठ है परंतु भगवान विष्णु जी योग निद्रा में लीन थे और उनके चरणों में मां गंगे थी मां लक्ष्मी उनके हृदय के पास जा बैठी किसी ने भी मां सरस्वती को सम्मान सहित आसन नहीं दिया
मां गंगे बोली कि भगवान विष्णु जी ने स्वयं मुझे अपने चरणों में स्थान दिया है तो मैं कैसे यहां से उठ जाऊं तो मां लक्ष्मी बोली कि मुझे तो हृदय में स्थान दिया है मैं कैसे है जाऊं इस अपमान समझकर मां सरस्वती ने लक्ष्मी को श्राप दिया कि उन्हें अपने स्वामी श्री हरि विष्णु जी से जुदा होकर मृत्यु लोक पर तुलसी बनकर जाना होगा और गंजे को भी श्राप दिया की धरती पर वह नदी बनकर बहेगी और पापियों से घिरी रहेगी
इस पर मां लक्ष्मी ने भी मां सरस्वती को श्राप दिया कि वह भी धरती पर नदी बनकर बहेगी इसी श्राप के कारण मां सरस्वती धरती पर नदी बनकर उतर आईउधर बैकुंठ धाम में मां लक्ष्मी किए पर पश्चाताप करने लगे उन्हें यह बात भी सता रही थी कि भगवान विष्णु जी से दूर होकर मृत्यु लोक पर जाना होगा तो भगवान विष्णु जी ही उन्हें आश्वासन देते हैं की मां सरस्वती के श्राप से जल्द उन्हें मुक्त करेंगे तब मां लक्ष्मी उनकी आज्ञा से धरती पर उतरती है धर्म नगरी के राजा धर्मराज माता लक्ष्मी की कड़ी तपस्या कर रहे थे उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी प्रकट हुई तो उन्होंने न धन मांगा ना वैभव बल्कि मां लक्ष्मी को अपनी पुत्री रूप में पानी की इच्छा प्रकट की इस बात से अत्यंत प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें के घर एक पुत्री के रूप में जन्म लिया उसे बच्चे का नाम उन्होंने देवी वृंदा रखा
देवी वृंदा विष्णु जी को पाने के लिए कठोर तप किए
परंतु भगवान विष्णु जी की माया से वे राजा के आंखों के सामने ही बाल्यवस्था से युवा कन्या बन गई थी मृत्यु लोक पर देवी वृद्धा को यह बात स्मरण नहीं था कि वह स्वयं मां लक्ष्मी की अवतार है उन्हें बस भगवान श्री हरि विष्णु जी को पाने की इच्छा थी यही बात उनके पिताजी से प्रकट करके उनकी अनुमति से वह हिमालय में चले गए ताकि ब्रह्मा जी की तपस्या कर वे श्री हरि विष्णु जी को पाने का वर मांग सके इतनी कठोर तपस्या की ऐसे तो महादेव को पाने के लिए मां पार्वती नहीं किया था देवी वृद्धा की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए उन्होंने इतना कहा कि शंखचूड़ से विवाह करना ही श्री हरि विष्णु जी को प्राप्त करने का मार्ग है इस समय हिमालय में शंखचूड़ भी ब्रह्मदेव की तपस्या कर रहा था ताकि वह अमृत का वर मांग सके ब्रह्मदेव प्रकट हुए
और उसे वरदान दिया कि उसके पत्नी के पतिव्रत में ही उसका अमृत छुपा है इधर देवी वृंदा सोचने लगती है कि उनके प्यार को उनके माता-पिता नहीं समझ पाएंगे और शंखचूड़ से विवाह न होने पर ब्रह्मा देव को दिया वचन टूट जाएगा प्राण जाए पर वचन न टूटे यह सोचकर वे नर्मदा नदी में जल समाधि के लिए तैयार हो गई थी तभी ब्रह्मदेव वहां प्रकट होकर उसे कहते हैं ना पुत्र आत्महत्या घोर पाप है वहां शंखचूड़ भी नदी के तट पर अपने प्राण त्यागने को सोच रहा है तुम दोनों गंधर्व विवाह कर लो तत्पश्चात हिमालय में देवी वृंदा और शंखचूड़ की भेंट होती है
नारद जी के कहने पर वृंदावन विष्णु का व्रत रखती है
इसके बाद वृंदा संखचुर के पास पहुंचती है और प्रभु ब्रह्मदेव का कहा शंखचूड़ से कहती है इस प्रकार दोनों गंधर्व विवाह करके शंखचूड़ के राज्य में चले जाते हैं अपने ससुराल में कदम ही रखती है वह नारद जी प्रकट होकर कहते हैं कि उनके पति पर घोर विपत्ति आ पड़ी है और उनके की रक्षा हेतु उन्हें भगवान विष्णु जी का व्रत रखना होगा भगवान विष्णु जी की परम भक्त देवी वृंदा व्रत रखकर भगवान विष्णु जी के द्वादश मंत्र का जाप करने लगती है
शंखचूड़ भगवान विष्णु के अंश थे
शंखचूड़ दर्शन भगवान विष्णु जी के ही अंश अवतार थे इसलिए उनमें देवी गुण भी थे और दराज में पैदा होने के कारण अहंकार जैसे ते गुण भी थे वह परम शक्तिशाली थे उन्होंने युद्ध में इंद्र को ही हराया था परंतु इंद्र ने चला चली वरुण देव को आज्ञा दे कि वे शंखचूड़ को घायल कर दे पतिव्रता के व्रत के प्रभाव से ही भगवान विष्णु जी ने जटायु को आज्ञा दी कि वे जाकर शंकर जी की प्राणों की रक्षा करें इसके बाद तो शंखचूड़ में तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर स्वर्ग पर भी अपना अधिकार बना लिया था अब स्वर्ग पर दैत्य का अधिकार था परंतु उसका अहंकार इससे संतुष्ट नहीं हुआ वह अगला आक्रमण महादेव पर करना चाहता था और कैलाश को प्राप्त करना चाहता था
भगवान विष्णु रूप बदलकर देवी वृंदा का व्रत भंग किए
इस पर स्वयं आदि शक्ति प्रकट होकर उसे चेतावनी दी की महादेव से युद्ध और कैलाश पर्वत पर आक्रमण उचित नहीं परंतु वह अहंकारी राजा किसकी सुनता वह महादेव से ही युद्ध करने लगा शंखचूड़ को किसी तरह रोकना था उसे की ताकत उसके पतिव्रता पत्नी के व्रत में छपी थी जिसे किसी तरह भंग करना था यह घोर पाप है यह जानते हुए भी इसके परिणाम के लिए भगवान विष्णु जी तैयार थे वेद महल में गए और मन ही मन क्षमा प्रार्थना कि वे शंखचूड़ का रूप धारण कर देवी वृंदा के निकट गए उन्होंने कहा देवी तुम्हारा व्रत सफल हुआ मैं हर युद्ध में विजई रहा चलो अब पानी पीकर व्रत तोड़ लो देवी तुलसी पानी ग्रहण कर व्रत तोड़ते ही शंखचूड़ का महादेव वध कर दिया
इसी कारण से भगवान विष्णु शालिग्राम और देवी वृंदा तुलसी के पौधा बन गया
वह महा विष्णु का अंश महा विष्णु में ही समा गया और शंखचूड़ को मुक्ति मिल गई यह देवी वृद्धा को एहसास हो गया की जो सामने है वह उसका पति नहीं है और उन्होंने उनसे जवाब मांगा कि आप अपना परिचय दे भगवान विष्णु जी अपने नीचे स्वरूप में आंखें उन्हें सारा वृतांत का सुनते हैं अत्यंत दुखी हुई कि जिनकी आराधना भी करती थी उन्होंने ही उनके साथ छल की पत्थर दिल कैसे हो सकते थे उन्हें श्राप देती है कि वह पत्थर ही बन जाए परंतु भगवान विष्णु जी ने उनका क्रोध समझा उनके श्राप को भी उन्होंने वरदान में बदल दिया भगवान विष्णु जी ने कहा कि वे तुलसी का पौधा बनाकर विष्णु प्रिया कहलाएंगे इतना कहकर उनका एक अंश शालिग्राम पत्थर बन गया और देवी वृंदावन भी पानी बनकर बह गई जैसे ही शालिग्राम जी से स्पर्श हुआ स्थान पर तुलसी का पौधा उग गया और इस तरह वह अपने हरि विष्णु को पा गई
तुलसी विवाह पूजा विधि Tulsi vivah Puja vidhi
आप अपने घर में सरल विधि से तुलसी विवाह कर सकते हैं जिस जगह से पर आप तुलसी विवाह करने जा रहे हैं उस जगह हल्दी से लिप ले उसे जगह चौक पुर ले और चौक पर गेहूं का अनाज रखे
गेंहू का अनाज आपको जरूर रखना है आप अपने घर के आंगन में आप तुलसी मैया का विवाह कर सकते हैं अगर आपके घर के मंदिर में अगर भगवान शालिग्राम है तो उनके साथ ही आप तुलसी मैया का विवाह कर सकते है अगर नहीं है तो लड्डू गोपाल जो है ना हम सब के घर में ज्यादातर विराजमान मिलेंगे तो आप लड्डू गोपाल के साथ भी तुलसी मैया का विवाह कर सकते है
अब आपको चौकी बिछा लेनी है तुलसी मैया का विवाह है तो गणेश जी की पूजा अनिवार्य है आपको जरूर करनी है गौरी जी और गणेश जी को जो है ना चौकी पर आप विराजमान कर लीजिए अगर आपके पास गौरी गणेश नहीं है तो आप सुपारी में कलवा लपेटकर बना सकते हैं और उसके चारों ओर कलेवा लपेट देना है बिल्कुल आसान तरीका है इसलिए आप ध्यान से पढ़िए आप भी इसको बना सकते हैं तो आप सुपारी के गौरी गणेश बनाकर चौकी पर उन्हें जरूर विराजमान कर ले बहुत ज्यादा आवश्यक होते हैं
तुलसी विवाह में पहले की जाती है गौरी गणेश की पूजा
सबसे पहले आपको गौरी गणेश का पूजन करना है और एक बात और बता दूंगा आपको सबसे पहले घी का दीपक को प्रज्वलित करना है और उसका पूजन करना बिल्कुल मत भूलना उसके बाद हमें गणेश जी का पूजन करना है तो यहां पर थोड़ा सा गणेश जी पर जल चढ़ा दे कलावरूपी वस्त्र अर्पित कर दे जनेऊ चढ़ा दे रोली का टीका कर दें चावल चढ़ा देंगे चंदन का टीका कर दीजिए तो इस तरह से जो है ना आपको गणेश जी का पूजन जरूर करना है
यहां पर बिल्कुल सरल तरीका बता रहा हूं इसलिए मैं जल्दी-जल्दी आपको सारा सामान बता दिया यह सारा सामान आपको जरूर चढ़ाना है गणेश जी पर गणेश जी विघ्नहर्ता है तो सबसे पहले आपको गणेश जी का पूजन करना अनिवार्य माना जाता है
जब आपकी शादी हुई होगी तो आपने भी देखा होगा सबसे पहले पंडित जी ने गणेश जी का ही पूजन करवाया होगा इस तरह का विधान इसमें भी किया जाता है इसमें पहले गणेश जी का पूजा किया जाता है
विवाह में शालिग्राम को स्नान करवाए
उसके बाद भगवान शालिग्राम को स्नान करवाना है अगर आपके पास भगवान शालिग्राम नहीं है तो आप अपने घर के लड्डू गोपाल को भी इस तरह से स्नान करवा सकते हैं सबसे पहले आपको शुद्ध जल से स्नान करवाना है उसके बाद पंचामृत से स्नान करवा लीजिए आप चाहे तो गंधोदक तक स्नान करवा सकते हैं तो जैसी देखिए आपके पास सुविधा हो उसे हिसाब से आप भगवान को स्नान जरूर करवा हम विवाह करने वाले हैं तो विवाह में जो है ना स्नान तो अनिवार्य होगा तो आपको स्नान जरूर करवाना है उसके बाद आपको तिलक करना है तिलक भी बहुत अनिवार्य है उसके बाद जो है ना भगवान पर आप तिली अर्पित करें क्योंकि भगवान शालिग्राम की पूजा में जो है ना एकादशी के दिन चावल चढ़ाना एकदम निषेध माना जाता है तो आप चावल भूल कर भी ना चढ़ाएं
हमेशा तीली चढ़ाई ताकि कभी अगर तिथि ऊपर नीचे हो भी जाती है ना तो आपसे वह मिस्टेक नहीं होगी इसलिए हमेशा तिल ही चढ़ाए इस बात इस वजह से पूजा करें उसके बाद जो है ना आपको मंजरी चढ़ानी है एक दिन पहले तोड़ ले क्योंकि एकादशी वाले दिन मंजरी नहीं तोड़ी जाती तो एक दिन पहले तोड़कर रख ले पूजा में आपको मंजरी जरूर चढ़ने है उसके बाद कलावरुपी वस्त्र अर्पित कर दे जनेऊ अर्पित कर दे
तुलसी विवाह में जनेऊ अवश्य चढ़ाएं
क्योंकि जेनाऊ विवाह में आवश्यक रूप से चढ़ाना चाहिए चढ़ाया जाता है पहनाया जाता है तो आपको जनेऊ जरूर पहनना है उसके बाद तुलसी मैया को जल चढ़ा दे तुलसी मैया को भी बढ़िया से तैयार कर दें तो आप अपने तुलसी मैया को साड़ी पहन सकती है लहंगा चोली पहन सकती है आपके पास उपलब्ध हो उसे हिसाब से उन्हें तैयार जरूर करें उसके बाद रोली का टीका कर दे बिंदी लगा दे तो उनको भी जो है ना पूरा सिंगार किया जाता है
तुलसी मैया का जैसे कि हमारी जब शादी होती है तो हमारी भी 16 सिंगार होते हैं ना उसी प्रकार आपको तुलसी मैया का श्रृंगार करना है
तुलसी विवाह में वरमाला का रस्म
उसके बाद रसम आता है वरमाला पहनाने का इस रस में आपको फूलों का वरमाला पहनना है इसके लिए आपको फूलों का वरमाला ले लेना है सबसे पहले फूलों की वरमाला को तुलसी मैया से छुए कर भगवान शालिग्राम को पहना दे
और उसके बाद शालिग्राम भगवान से छुए कर तुलसी मैया को पहना दे को पहना दे तो इस तरह से जो है ना वरमाला पहनाई जाती है तो यह भी रसम आपको जरूर करनी है तुलसी कि माला आपको इजीली मिल जाएगी मार्केट में मुश्किल नहीं है और आपको ज्यादा दिक्कत ना हो इसलिए आपको तुलसी मैया और भगवान शालिग्राम को वरमाला जरूर पहनना चाहिए अगर भगवान शालिग्राम नहीं है तो लड्डू गोपाल को भी पहना सकते हैं
अगर लड्डू गोपाल भी नहीं है तो आप तस्वीर के साथ भी जो है ना तुलसी मैया की पूजा कर सकते हैं श्री हरि की तस्वीर होनी चाहिए तो इस बात का ध्यान रखें यानि भगवान विष्णु की तस्वीर होनी चाहिए
तुलसी विवाह में गठबंधन का रस्म
इसके बाद आपको गठबंधन की रस्म करनी है गठबंधन के अंदर क्या-क्या रखा जाता है हल्दी की गांठ सुपारी थोड़ी सी पीली रखिए है और कुछ दक्षिणा 11 रुपए 21 रुपए₹51 आप अपने समर्थ के अनुसार रख सकते हैं इसके बाद आपको गठजोड़ा करना है गठजोड़े में पीले कलर का वस्त्र जो है ना भगवान शालिग्राम का है और लाल कलर की चुन्नी हमारी तुलसी मैया की है तो कलर का ध्यान रखना है श्री हरि की पूजा में पीला कलर विशेष माना जाता है इसलिए भगवान शालिग्राम को आप पीले कलर का दुपट्टा ओढ़ाए और तुलसी मैया को लाल कलर का क्योंकि सुहाग की निशानी जो है ना लाल कलर होता है आई होप सारी चीज समझ पा रहे होंगे तो इस तरह से आपको गठबंधन करना है
तुलसी विवाह सिंदूरदान का रस्म
उसके बाद तुलसी मैया की पूरी मांग भरनी है तो शालिग्राम से छुए कर रोली और जो कुमकुम होता है जिसे सिंदूर भी बोला जाता है मांग भरने वाला वह सिंदूर जो है ना सात बार आपको तुलसी मैया के मांग में भरना है आप चाहे तो यहां पर सोने की अंगूठी का भी यूज कर सकते हैं चांदी का जो कॉइन होता है उसका भी यूज कर सकते हैं तो अपने हिसाब से देख ले उसके बाद बिछिया जो है ना बहुत ज्यादा जरूरी होते हैं जिनके घर में बिछिया पहने जाते हैं जैसे कि हिंदू रीति रिवाज के अनुसार देखा जाए तो सुहागिन महिलाएं बिछिया जरूर पहनते हैं बिछिया को सुहाग की निशानी मानी जाती है
इसलिए बिछिया जरूर चढ़ाए उसके बाद आपको चूड़ियां चढ़ती है क्योंकि चूड़ियां भी सुहाग की निशानी होती है आप चाहे तो लाख की चूड़ियां चढ़ा सकते हैं आप चाहे तो कांच की चूड़ियां चढ़ा सकते हैं दोनों ही जो है ना बहुत शुभ माना जाता है इसके बाद आपको हल्दी लगानी है महावर लगाना है यानी आलता जिसे बोला जाता है महावर आलता ही होता है आलता जो है ना बहुत जरूरी होता है सुहाग में
इसलिए सबसे पहले हल्दी लगा दे उसके बाद महावर लगा दे तो यह सारी रसमें जो है ना आपको जरूर करनी है बिल्कुल सरल तरीका बताने की कोशिश कर रहा हूं ताकि आप आसानी से आप तुलसी मैया का ब्याह कर सके
इसके बाद आपको ऋतु फल का भोग लगाना है इसमें आप सिंघाड़े का भोग लगा सकते हैं तो उसके बाद मिठाई का भोग लगाए
तुलसी विवाह सात फेरे का रस्म
इसके बाद होती है भामर की परिक्रमा करनी है जैसे हमलोग विवाह में सात फेरे लेते है तो आपको सात परिक्रमा जो है ना तुलसी मैया और शालिग्राम की करनी होती है अगर आपकी तुलसी मैया बहुत छोटी सी है उनका गमला छोटा सा है तो आप इसलिए उनका गमला उठाकर और भगवान शालिग्राम को हाथ में लेकर परिक्रमा करवा दे साथ अगर आपकी तुलसी मैया बड़ी है तो बिल्कुल ना उठाएं ध्यान रखें देखिए दिक्कत हो सकती आप भी गिर जाए तुलसी मैया गिर जाए तो ध्यान रखें कोई दिक्कत नहीं आप ही सात परिक्रमा कर ले क्योंकि पूजा भाव की होती है अगर आप सच्चे मन से पूजा करेंगे तो भगवान आपके ऊपर जरूर प्रसन्न होंगे भावर और परिक्रमा होने के बाद भगवान शालिग्राम के बाई की और तुलसी मैया को विराजमान कर दे आई होप आप सारी चीज समझ पा रहे होंगे वैसे मैं सब कुछ क्लियर करने की पूरी कोशिश कर रहा हूं
उसके बाद आपको आरती करनी है आरती आप चाहे तो कपूर से कर सकते हैं आप चाहे तो घी के दीपक आरती कर सकते हैं तो इसके बाद शंख से तुलसी मैया और हमारे लड्डू गोपाल है भगवान शालिग्राम है उनकी नजर आप जरूर उतरे इसके बाद तुलसी मैया और शालिग्राम का विवाह संपन्न हो चुका है
FAQS - tulshi vivah kab hai
ऊपर हमने आपको तुलसी विवाह कब है 2023 इस बारे में बताया है फिर भी कुछ लोगों के मन में तुलसी विवाह से संबंधित अलग-अलग प्रश्न आते रहते हैं तो चलिए कुछ प्रश्नों का उत्तर भी जान लेते हैं आपके प्रश्न कुछ इस प्रकार के होते हैं
Tulsi Vivah 2023
तुलसी एकादशी कब है 2023
Dev uthni ekadashi 2023
तुलसी विवाह कब है
विवाह मुहूर्त 2023
देवउठनी एकादशी 2023 November
Tulsi Puja kab se shuru hoga
2023 Tulsi Vivah
2023 Tulsi Vivah date and time
तुलसी विवाह 2023 में कब है
Q क्या कुंवारी लड़कियां तुलसी विवाह कर सकती है?
Ans तुलसी विवाह को लेकर कई लोग इस बात को लेकर संचय में रहते हैं कि क्या कुंवारी लड़कियां तुलसी विवाह कर सकती है या नहीं
तुलसी विवाह कुंवारे लड़के और लड़कियां नहीं करवा सकती जिस तरह से शादीशुदा लोगों को यज्ञ पूजा या कन्यादान मैं बैठने से इसका पूरा फल मिलता है उतना कुंवारी लड़की या लड़कियों को नहीं मिल पाता है शास्त्रों में भी बताया गया है कि शास्त्रों के अनुसार विवाह में जब भी कन्यादान या विवाह के कोई अन्य कार्य किए जाते हैं तो वह जोड़ के साथ किए जाते हैं यानी उसमें पति और पत्नी दोनों का एक साथ रहना जरूरी है क्योंकि तुलसी माता का विवाह शालिग्राम के साथ पूरे विधि विधान के साथ संपन्न किया जाता है इसलिए पति-पत्नी जोड़े में ही तुलसी का विवाह कर सकते हैं यदि तुलसी माता का विवाह कोई कुंवारी लड़कियां लड़के करवाते हैं तो इससे उसकी कोई लाभ नहीं मिलेगा
तुलसी एकादशी कब है 2023
तुलसी एकादशी है 23 नवम्बर 2023 को मनाया जाएगा तुलसी एकादशी प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है कहा जाता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के दिन भगवान विष्णु श्याम कल से 5 माह बाद जागते भगवान विष्णु को जगाने के बाद सभी मंगल कार्य क्रम शुरू किए जाते हैं और इसी दिन रात्रि के समय माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है इस दिन को लोग बहुत शुभ मानते हैं
देवउठनी एकादशी 2023 में कब है
देवउठनी एकादशी 2023 में कार्तिक मां के शुक्ल पक्ष 23 नवंबर को मनाया जाएगा इसी दिन भगवान विष्णु सायं काल से जाते हैं इसलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है देवउठनी एकादशी का बड़े ही बेशर्मी से इंतजार करते हैं क्योंकि सभी मांगलिक कार्य देव उठाने के बाद ही शुरू किए जाते हैं और इसी दिन शालिग्राम से माता तुलसी का विवाह भी किया जाता है इसलिए इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है
देवउठनी एकादशी 2023 शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी में शुभ मुहूर्त 22 नवंबर 2023 रात 11:03 कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होगी
23 नवंबर 2013 रात्रि 9:01 पर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि समाप्त हो जायेगी
पूजा का समय प्रातः काल 6:51 से लेकर प्रातः काल 8:10 तक रहेगा
पूजा का शुभ मुहूर्त रात्रि में शाम 5:26 से लेकर रात 8:45 तक रहेगा
व्रत पारण का समय 24 नवंबर 2023 प्रातः काल 6:50 से लेकर 8:57 तक रहेगा
Q तुलसी विवाह कितने तारीख को है?
Ans तुलसी विवाह 24 नवंबर 2023 को है
Q तुलसी विवाह कितने दिन तक कर सकते हैं?
Ans तुलसी विवाह 5 दिनों तक मनाया जाता है
Q तुलसी देवी का पति कौन है?
Ans तुलसी देवी का पति भगवान विष्णु है
Q तुलसी विवाह कितने बजे करना है?
Ans पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:50 से लेकर सुबह 8:51 तक रहेगा रात्रि में पूजा का समय 5:26 से लेकर के 8:45 तक रहेगा इस बीच पूजा कर सकते हैं
Q तुलसी जी का असली नाम क्या है?
Ans तुलसी जी माता लक्ष्मी का अंश है माता सरस्वती द्वारा दिए गए श्राप के कारण राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ जिसमें उसे तुलसी जी का नाम वृंदा रखा गया
Q तुलसी जी पिछले जन्म में कौन थी?
तुलसी जी पूर्व जन्म में वृंदा थी कहा जाता है की देवी सरस्वती के श्राप के कारण तुलसी जी को धरती पर जन्म लेना पड़ा जिसमें उसका नाम वृंदा रखा गया और तुलसी जी का शंखचूड़ नामक राक्षस से विवाह हुआ
Q घर तुलसी विवाह कैसे किया जाता है?
घर में तुलसी माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का आपस में विवाह कराया जाता है सबसे पहले गौरी गणेश जी का पूजन किया जाता है इसके बाद शालिग्राम को स्नान करवाया जाता है इसके बाद वस्त्र और जानू अर्पित किए जाते हैं इसके बाद वरमाला का रसम किया जाता है इसके बाद तुलसी विवाह में गठबंधन का रस्म किया जाता है इसके बाद सिंदूरदान का राशन किया जाता है इसके बाद सात फेरे का रस में किया जाता है यह सब करने के बाद तुलसी विवाह संपन्न हो जाता है
Conclusions Tulsi Vivah kab hai
दोस्तों आज के लेख में हमने आपको बताया कि तुलसी विवाह कब है 2023 Tulsi Vivah kab hai 2023 तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त पूजा विधि व्रत कथा और महत्व के बारे में पूरी जानकारी दिया है
और इसके साथ ही पूजा करने का सरल विधि बताया है जिससे आप जान गए होंगे की 2023 में तुलसी विवाह कब है तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त कब शुरू होगा पूजा करने की विधि क्या है यह सब आप अच्छी तरह से जान गए होंगे अगर फिर भी इस पोस्ट से जुड़ी कोई भी सवाल आपके मन में हो तो कमेंट में हमें जरूर बताएं
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