गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021

गणेश जी क्षीर सागर का सारा दूध क्यों पी गए

गणेश जी क्षीर का सारा दूध क्यों पी गए

दोस्तों आज हम इस टॉपिक पर बात करेंगे की गणेश जी ने क्षीर सागर का सारा दूध क्यो पी गए 
क्षीर सगर्---दूध का भरा हुआ एक विशाल समुद्र जिसे आज के जमाने मे बड़ी बड़ी पंप लगा दे लेकिन फिर भी हम उसे पूरा खाली नहीं कर पाएंगे  । लेकिन गणेश जी ने क्षीर सागर का पूरा दूध कुछ हि पल मैं पी गए आइए जानते हैं उसके बारे में
  हम किसी भी देवी देवता का पूजा करते हैं तो सबसे पहले गणेश जी का पूजा करते हैं गणेश जी को प्रथम पूजन का अधिकार मिला है कोई भी शुभ काम करने से पहले हम गणेश जी का पूजा करते हैं । दरअसल की पूजा आराधना अनुष्ठान में विघ्न बाधा ना आए इसलिए गणेश जी की पूजा की जाती है गणेश जी को विघ्नहर्ता व रिद्धि सिद्धि की स्वामी भी कहा जाता है

1  माता पार्वती को  गणेश जी की बचपन की स्मृतियों का अनुभव


यह कथा उस समय की है भगवान शिव और सारे गन प्रेत सावन की उत्सव की तैयारी में व्यस्त थे तभी आकाशमत उन्हें मातृत्व भाव का अनुभव होने लगा वह अपने पुत्र की बाल अवस्था की कल्पना करने लगे हैं वह अपने पुत्र की एक झलक देखने को तरसने लग




बाल गणेश की स्मृतियां उनकी आंखों के सामने दिखाई देने लगे माता पार्वती को गणेश के बाल लीलाओं को पुनः एक बार अनुभव करने की इच्छा उसके मन को विचलित करने लगी
माता पार्वती शिव के पास गए और कहा स्वामी मैंने बाल गणेश का स्वप्न देखा है उसकी ठिठोली उसका नटखट उसका भोलापन उसकी लीलाएं सच कहूं तो संसार में इससे सुंदर कुछ नहीं हो सकता मैं गणेश को पुनः एक बार बाल रूप में देखना चाहती हूं
शिव जी --तुमने एक । स्वप्न देखा और स्वप्न भी भला कभी सत्य होता
माता गोरी -- लेकिन सत्य ही तो शिव है आप महादेव है आप कुछ भी कर सकते हैं कि मैं अपने बाल गणेश कि रूप को एक बार फिर से देख सकूं

भगवान शिव ने कहा यह असंभव है गोरी तुम भी जानती हो कि सावन मास। प्रारंभ होने वाली है आषाढ़ शुक्ल पक्ष के एकादशी आने वाली है और उसमें प्रभु नारायण चयन को चले जाएंगे और उनकी अनुपस्थिति में संसार का सारा दायित्व मुझ पर आ जाएगा उसके उपरांत मैं व्यस्त हो जाऊंगा इसलिए मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता
। तुम श्री कृष्ण के पास द्वारका चली जाओ वह तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे
। उस समय भगवान विष्णु श्री कृष्ण के अवतार में द्वारिका में थे और संसार को प्रेम  सिखा रहे थे और अनेकों लीला रच रहे थे



 गौरी भगवान विष्णु को अपना भाई मानते थे  श्री कृष्ण विष्णु के अवतार थे इसलिए श्री कृष्ण को भी अपना भाई मानते थे और श्रीकृष्ण की गोरी को अपना बहन मानते थे और अगर बहन को सहायता की आवश्यकता है तो भला भाई उनकी सहायता का क्यों ना करें यही सोचकर माता गौरी श्री कृष्ण के पास  सहायता के लिए चले जाते हैं श्री कृष्ण को अपनी सारी व्यथा सुनाते हैं
श्री कृष्ण सारी बातें सुनने के बाद कहा की। इस समस्या का एक ही हाल है क्या आप गणेश को पुकारो माता की पुकार सुनकर गणेश हम घर में आपके समक्ष उपस्थित हो जाएगा

2 गणेश जी को शस्त्र से खेलने का शौक होना

श्री कृष्ण के सुझाव सुनकर माता पार्वती कैलाश को लौट आती है गणेश जी को पुकारते हैं माता की पुकार सुनकर पुत्र कैसे ना आए वह तुरंत माता के सामने उपस्थित हो गए माता पार्वती ने कहा तुम आ गए पुत्र माता बुलाए है और पुत्र ना आए वह पुत्र नहीं पापी होता है मां अपने मन से मुझे बुलाया और मैं मन की गति से चला आया मेरे लिए क्या आदेश है मां आपने मुझे याद किया माता पार्वती ने गणेश जी से कहा पुत्र मैं तुम्हें बाल रुप में देखना चाहता हूं इससे तुम्हारी पहले की सारी स्मृतियां चली जाएगी तुम्हारे पास बल बुद्धि विवेक निधि जैसे सिद्धियां है बाल रूप में आने के बाद तुम यह सब भूल जाओगे
बाल गणेश ने कहा यह सब तो आपके द्वारा ही दी गई सिद्धियां है आपका चीज आपको ही लौट आने में संकोच कैसी मां वह अपने सीधी का उपयोग करके तुरंत बाल रूप में आ गए उनके बाल रूप को देखने के लिए सारे देवी देवता पहुंच गए आसमान से फूलों की वर्षा होने लगी माता पार्वती बाल गणेश को देखकर अपने सीने से लगा लिए या एक अनोखी घटना थी के गणेश जी पुनः एक बार। बाल रूप में आ गए बालक तो बालक हि होता है । वह सारी गण प्रेत को सताने लगे उसी समय इंद्र किसी कार्य से कैलाश को पधारे थे उसकी अस्त्र बज्र पर जब बाल गणेश की नजर पड़ी तो वह उसे लेकर खेलने लगे


दिया। संसार की सबसे शक्तिशाली अस्त्र से खेलना चाहते हैं इंद्रदेव ने सोचा यह एक घातक अस्त्र है यदि उसका गलत उपयोग हो जाए तो सारी सृष्टि पर संकट आ सकती है
 इंद्रदेव ने बताया। यह संसार की सबसे शक्तिशाली अस्त्र नहीं है यह आपके पिता के त्रिशूल का भी मुकाबला नहीं कर सकते इतना सुनते हैं गणेश जी इंद्रदेव के अस्त्र लौटा दिया

 3 गणेश जी को श्री कृष्ण का पता चलना 

। एक बार श्री कृष्ण को कैलाश से भोज के लिए आमंत्रण मिला बहन द्वारा दी गई आमंत्रण को ठुकरा नहीं सकते थे श्री कृष्ण कैलाश पधारे भगवान शिव और गणेश के साथ मिलकर भोजन कर रहे थे सबको भोजन करने के बाद गणेश जी के थाली में कुछ मोदक बच गए और वाह छोड़ कर उठने लगा तो श्री कृष्ण ने कहा यह क्या गणेश तुम पुरा भोजन भी नहीं किया गणेश जी ने कहा नहीं मामा मेरा पेट भर गया और कुछ खाने की इच्छा नहीं है इतना मैं तुम्हारा पेट भर गया अरे तुम तो संसार के सारे चीज बता सकते हो तुम सारा सागर का जल को सकते हो। बस जरूरत है 
तुम्हारा दृढ़ संकल्प कि। इतना सुनते हैं गणेश जी ने भोजन फिर से आरंभ कर दिया और रसोई में जितना भी  शेष भोजन बचा था । सारा समाप्त कर दिए इसके बाद श्री कृष्ण द्वारका लौट गए

। लेकिन गणेश जी को अभी भी संसार की सबसे बड़ी अस्त्र से खेलने के लिए जिज्ञासा समाप्त नहीं हुई भगवान शिव त्रिशूल मांगने लगे भगवान शिव को मजबूर होकर गणेश को त्रिशूल देना पड़ा भगवान शिव गणेश जी त्रिशूल वापस पाना  चाहते थे लेकिन गणेश जी त्रिशूल देना ही नहीं चाहते थे तब शिव जी  को बताया पुत्र इससे भी बड़ा अस्त्र तुम्हारे मामा श्री कृष्ण के पास है सुदर्शन चक्र अंगुली के ऊपर घूमता है और जो बड़े से बड़े शत्रु का शत्रु का। सर काट सकता है


सुदर्शन चक्र तुम्हारे मामा श्री कृष्ण के पास है गणेश जी के जिज्ञासा और बढ़ गई और वह अपने पिताजी को त्रिशूल लौटा दिए और सुदर्शन चक्र पाने के लिए द्वारका जाने का निश्चय कर लिया
। जब श्री कृष्ण को इस बात का पता चला गणेश जी उसका सुदर्शन चक्र लेने के लिए द्वारिका आ रहे हैं तो वाह शयन के लिए क्षीर सागर को चले गया । उसके नींद में बाधा ना आए इसकी जिम्मेदारी बलराम जी को सौंपा गया गणेश जी कैलाश से द्वारिका आए द्वारका में सब तो मिले लेकिन उसके मामा श्री कृष्ण कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे तब उन्होंने सभी से कृष्ण के बारे में पूछा लेकिन किसी ने उसे श्री कृष्ण के बारे में नहीं बताया कि आखिर श्रीकृष्ण है कहां गणेश जी निराश होकर कैलाश को लौट गए तब उसके पिता श्री ने बताया कि उसके मामा श्री कृष्णा क्षीर सागर में विश्राम कर रहे हैं

4 गणेश जी को क्षीर सागर में प्रवेश करना और क्षीर सागर का सारा दूध पीना

पिताजी के बात सुनते ही गणेश जी बैकुंठ को चल दिए । बैकुंठ के रास्ते होकर बो क्षीर । फिर सागर पहुंच गया जहां श्री कृष्ण भगवान विष्णु के रूप में शेषनाग के सैया पर विश्राम कर रहे थे



बलराम जी सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए सुदर्शन चक्र को । शेषनाग के सिर पर स्थापित कर दिया ताकि सुदर्शन चक्र को कोई चुरा ना पाए श्री कृष्णा ने उसे सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी गणेश जी क्षीर । सागर तो पहुंच गए लेकिन भगवान विष्णु सो रहे थे वह उसे जगाए कैसे गणेश जी ने विष्णु जी को जगाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसका सारा प्रयास विफल हो गए उसे भूख भी बड़ी । तीव्र लगी थी उसे भूख सताने लगी तब गणेश जी के मन में एक युक्ति आई कि क्यों ना वाह सागर का सारा दूध पी जाए सागर का सारा दूध खत्म होते ही मामा जी भी उठ जाएंगे और उसकी सुधा भी शांत हो जाएगी मामा जी ही कहते थे। कि मैं संसार का कोई भी चीज खा सकता हूं सारा सागर का जल पी सकता हूं तो मैं क्षीर । सागर का सारा दूध क्यों नहीं पी सकता यह सोच कर गणेश जी के सागर का दूध पीना । आरंभ कर दिए




कुछ ही पल में क्षीर । सागर का सारा दूध समाप्त कर दिए उसके उदर मैं क्षीर सागर का । सारा दूध समा गया

5 . गणेश जी द्वारा क्षीर सागर का सारा दूध पुनः वापास करना

जब गणेश जी ने देखा क्षीर सागर का पूरा दूध। पूरा दूध समाप्त हो चुका है। लेकिन मामा श्री अभी तक नहीं । उठे बड़े मामा बलराम जी को अगर इस बात का पता चला तो वह हमें ढूंढने का प्रयास करेंगे इसलिए हमें किसी सुरक्षित स्थान पर शुभ जाना चाहिए दुनिया में सबसे सुरक्षित स्थान मां का आंचल होता है वह तेरी पार्वती की आंचल मैं जाकर छुप गए और किसी को ना बताने के वचन अपने मां वचन से ले लिए
इधर जब बलराम जी को इस घटना का पता चला तो वह गणेश जी को ढूंढने लगे समस्या यह थी कि अगर सारा दूध गणेश जी के उदर । मै पच गया तो अनर्थ हो जाएगा संसार का संतुलन बिगड़ जाएगा क्षीर सागर् को फिर से भर पाना नामुमकिन हो जाएगा गणेश जी को ढूंढते ढूंढते बलराम जी कैलाश जा पहुंचे लेकिन कैलाश पर भी गणेश जी को ढूंढ नहीं पाए अंत में जाकर पार्वती को सारी घटना सुनाया पार्वती सोचने लगी इसलिए गणेश मेरे आंचल में आकर छिपा है और बलराम से कहा इस विषय में मैं कुछ नहीं कर सकता गणेश ने मुझ से वचन लिया है कि जब तक मेरी इच्छा ना हो कोई हमें जगा ना पाए गणेश जी मां के आंचल में छुपा सारी बातें सुन रहे थे गणेश को लगा कि अगर हम अभी नहीं उठे तो बाद में हमें मां की डांट सुननी पड़ेगी इसलिए वह उठकर आंचल से बाहर आ गए । तब मैंने उसे क्षीर सागर का दूध लौटाने को कहा मां की आज्ञां मानकर गणेश जी ने  क्षीर  सागर जाकर क्षीर सागर का सारा दूध पुनः लौटा दिया












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